भारतीय संविधान में समानताओं तथा शिक्षा संबंधी प्रावधानों का वर्णन करें ।
उत्तर – भारतीय संविधान में समानताओं का प्रावधान तथा शिक्षा (Equality in Indian Constitution and Education ) – संविधान में प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं—
I. संविधान की भूमिका (Preamble of the Constitution)
‘हम भारत के लोग’, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व- लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को —
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छः विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।
नोट–’समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ तथा ‘अखण्डता’ शब्द 1976 में संविधान संशोधन के अन्तर्गत जोड़े गए ।
तद्नुसार भारतीय नीति के निम्नलिखित मूल्य दृष्टिगोचर होते हैं
समाज के इन सब आदर्शों की पूर्ति हेतु संविधान में मूल अधिकार (Fundamental Rights) तथा राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy) में अनेक प्रावधान किए हैं—
II. भारतीय नागरिक के मूल अधिकार (Fundamental Rights of Indian Citizen) – भारतीय संविधान में नीचे लिखे मूल अधिकार सभी नागरिकों को दिए गए हैं –
1. समानता अथवा समता का अधिकार (Right to Equality ) — इसके अन्तर्गत नीचे लिखे तत्त्व शामिल हैं
- विधि के समक्ष समानता (Equality before Law) — धारा 14
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (Prohibition of Discrimination on Grounds of Religion, Race, Caste, Sex or Place of Birth ) — धारा 15
- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (Equality of Opportunity in Matters of Public Employment)– धारा 16
- अस्पृश्यता (छूतछात) का अन्त (Abolition of Untouchability) — धारा 17
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom)— इसके अन्तर्गत नीचे दिए तत्त्व शामिल है—
- वाक् स्वतन्त्रता तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता (Freedom of Speech and Expression)— धारा 19 (a)
- शान्तिपूर्वक तथा हथियारों के बिना इकट्ठे होना (To Assemble Peacefully and without Arms ) – धारा 19 (b)
- संघ बनाने का अधिकार (Freedom to Form Association) — धारा 19 (c)
- भारत में अबाध आने-जाने का अधिकार ( Freedom to Move Freely throughout India) – धारा 19 (d)
- भारत के किसी भी भाग में निवास करने तथा बसने का अधिकार (Freedom to Reside and Settle in any Part of India) – धारा 19 (e)
- कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार (Freedom to Practise any Profession, to Carry on any Occupation, Trade or Business)
- शिक्षा अधिकार (Right to Education ) — धारा 21 – इस धारा को वर्ष 2002 में जोड़ा गया ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (RightAgainst Exploitation)—
- मानव के दुर्व्यापार तथा जबरन श्रम का प्रतिबन्ध (Prohibition of Traffic in Human Beings and Forced Labour) — धारा 23
- कारखानों आदि में बच्चों के कार्य करने का प्रतिबन्ध (Prohibition of Employment of Children in Factories, etc.) — धारा 24
- अन्तःकरण की और धर्म को मानने की, आचरण तथा प्रचार की स्वतन्त्रता का अधिकार (Freedom of Conscience and Free Profession, Practice and Propagation of Religion ) — धारा 25
- धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता (Freedom to Manage Religious Affairs) — धारा 26
- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के भुगतान के बारे में स्वतन्त्रता (Freedom as Payment of Taxes for Promotion of Any Particular Religion )— धारा 26
- कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक उपासना की उपस्थिति होने के बारे में स्वतन्त्रता (Freedom to Attendance at Religious Instruction or Religious Worship in Certain Educational Institutions ) — धारा 28
- संस्कृति तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (Cultural and Educational Rights ) – (1) अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (Protection of Interests of Minorities) — धारा 29 (2) शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार (Right of Minorities to Establish and Administer Educational Institutes)धारा 30
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) — -धारा 32, 33 तथा 34
III. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy)— भारतीय संविधान के भाग IV में 16 धाराओं (अनुच्छेदों) में सिद्धान्त दिए गए । कुछ विचारकों का कहना है कि इन सिद्धान्तों के अनुसार यदि केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारें कार्य करें तो भारत पृथ्वी पर स्वर्ग बन जाएगा। इन सिद्धान्तों की भारतीय समाज के नव-निर्माण में विशेष भूमिका है । इसके अनुसार समाज के विकास के लिए कई कार्य किए गए हैं, परन्तु बहुत कार्य करने की आवश्यकता है । इन सिद्धान्तों पर विस्तृत रूप से पहले चर्चा की गई है । यहाँ पर संक्षेप में इनका उल्लेख किया जा रहा है ।
- न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था (Social Order based on Justice) — धारा 38 (1)
- असमानताओं को कम-से-कम करना (Minimisation of Inequalities)— धारा 38 (2)
- आर्थिक न्याय सुरक्षित करने के सिद्धान्त (Principles of Securing Economic Justice) — धारा 39
- समान न्याय तथा निःशुल्क कानूनी व्यवस्था (Equal Justice and Free Legal Aid) — धारा 39A
- ग्राम पंचायतों का संगठन (Organisation of Village Panchayats ) — धारा 40
- कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार (Right to Work, to Education and to Public Assistance ) – धारा 41
- प्रसूति सहायता के लिए न्यायोचित और सहानुभूतिपूर्ण परिस्थितियों का प्रबन्ध (Provision for Just and Human Conditions of Work for Maternity Relief)धारा 42
- श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि (Living-wage, etc. for workers) धारा 43
- उद्योगों के प्रबन्धन में कार्यकर्ताओं की भागीदारी (Participation of Workers in Management of Industries) धारा 43A
- समरूप व्यवहार सिद्धान्त (Uniform Civil Code) – धारा 44
- छ: वर्ष से कम बच्चों के लिए शिशु देखभाल तथा शिक्षा का प्रावधान (Provision for Childhood Care and Education below the Age of Six Years) धारा 45 (यह संशोधन 2002 में किया गया ।)
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों की अभिवृद्धि (Promotion of Educational and Economic Interests of f Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Other Weaker Sections) – धारा 46
- पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करना तथा जन स्वास्थ्य सुधार (Raising the Level of Nutrition, Standard of Living and Public Health)– धारा 47
- कृषि और पशुपालन का संगठन (Organisation of Agriculture and Animal Husbandry ) — धारा 48
- पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा (Protection and Improvement of Environment and Safeguarding of Forest and Wild Life ) — धारा 48A
IV. नवीन सामाजिक व्यवस्था निर्माण करने में नागरिकों के कर्त्तव्य (Duty of the Citizens for the Establishment of the New Social Order) — भारतीय संविधान में जहाँ एक ओर भारतीय नवीन समाजिक व्यवस्था निर्माण में केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डाला गया है, वहाँ पर इस नव-निर्माण कार्य के लिए देश के नागरिकों की जिम्मेदारी भी दर्शायी गई है । भाग IVA, धारा 51A में नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया है।
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह –
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें ।
- स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए और उनका पालन करें ।
- भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें ।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और क्षेत्र या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामाजिक (Composite) संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव है, रक्षा करें और उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षा रखें और हिंसा से दूर रहें ।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले ।
- यदि माता-पिता या संरक्षक है, छ: वर्ष से चौदह वर्षतक की आयु वाले अपने यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य (Ward) के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें ।
समता अथवा समानता सम्बन्धी शैक्षिक कार्यक्रम—
- संविधान की धारा 45 के अनुसार 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाए । अब इसमें परिवर्तन धारा 21A में किया गया है, जिसका विवरण अन्यत्र पहले दिया जा चुका है ।
- नागरिकों को साक्षर करने के साथ-साथ नागरिकता का ज्ञान देने, राष्ट्र की कार्यक्षमता में वृद्धि करने तथा सांस्कृतिक विकास करने के लिए समाज शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा पर बल देना ।
- माध्यमिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा का विस्तार करके प्रत्येक शिक्षा में नेतृत्व का विकास करना ।
- आर्थिक स्तर, जाति, धर्म, लिंग आदि का भेद किए बिना सभी, नागरिकों को विकास के समान शैक्षिक अवसर और सुविधाएँ देना ।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सहिष्णुता, आत्मानुशासन, आत्म-निर्भरता, उत्तरदायित्व ग्रहण करने की भावना तथा कार्य करने की निश्चयात्मक अभिरुचि का शिक्षा द्वारा विकास करना ।
- राष्ट्रीय विकास की दृष्टि से तथा जनतन्त्र को सफल बनाने की दृष्टि से आयोग ने निम्नलिखित राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किए –
- खाद्य पदार्थों की आत्म-निर्भरता हो, अतः कृषि शिक्षा एवं कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक की शिक्षा प्रदान करना ।
- आर्थिक विकास और रोजगार की समस्या हल हो, इसके लिए शिक्षा को उत्पादकता से जोड़ा जाना, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना । सैद्धान्तिक शिक्षा की अपेक्षा व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराना ।
- सामाजिक तथा राष्ट्रीय समंजन स्थापित करने के लिए शिक्षा में वांछित सुधार लाना ।
- शिक्षा द्वारा राजनीतिक जागृति और नागरिकता के मूल्यों का विकास करना । सामयिक राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं से बालकों को अवगत कराकर उनको अधिकार एवं कर्त्तव्यों की शिक्षा प्रदान करना ।
- आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास हो, इसके लिए उचित शैक्षिक वातावरण का निर्माण करना |
नोट – पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में शिक्षा के नवीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था के योगदान पर विस्तृत चर्चा की गई है, जैसे शिक्षा का धर्मनिरपेक्ष सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने में योगदान शिक्षा तथा भावात्मक सन्तुलन शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार आदि। इसी सन्दर्भ में संविधान में अनेक प्रावधान किए गए हैं, जिनके अनुसार पिछड़े वर्गों के शैक्षिक उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
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