भाषायी पाठ्यचर्या संगठन या निर्माण के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।

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प्रश्न – भाषायी पाठ्यचर्या संगठन या निर्माण के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पाठ्यचर्या संगठन के सिद्धान्त निम्नलिखित प्रकार हैं-
  1. विषय-सामग्री का चयन उद्देश्य आधारित-पाठ्यचर्या शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन होती है। पाठ्यचर्या के जो उद्देश्य रखे जाते हैं, उनको प्राप्त करने के लिए चयनित की गयी विषय-सामग्री उद्देश्य आधारित होनी चाहिए। भाषा – शिक्षण के उद्देश्य साहित्य और भाषा दोनों ही दृष्टियों से व्यापक होते हैं, अतः इनकी प्राप्ति में साहित्य और भाषा इन दोनों के विविध पक्षों से सम्बन्धित विषय-सामग्री स्तरानुकूल रखनी चाहिए।
  2. विविधता का सिद्धान्त – पाठ्यचर्या में विविधता होनी चाहिए। जीवन के अनेक रंग हैं और ज्ञान के अनेक क्षेत्र जीवन के विभिन्न रंगों एवं ज्ञान के विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित विषय-सामग्री पाठ्यचर्या में होनी चाहिए। विषय-सामग्री चयन के समय व्यक्तिगत भन्नता, योग्यता, क्षमता एवं आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
  3. समन्वय का सिद्धान्त – पाठ्यचर्या को संगठन रूप में प्रस्तुत होना चाहिए जिससे कि विविध क्षेत्रों का ज्ञान एवं अनुभव एकीकृत रूप में प्रकट हो सके। एक-दूसरे से असम्बद्ध पाठ्य सामग्री नहीं होनी चाहिए।
  4. नमनीयता का सिद्धान्त पाठ्यचर्या नमनीय होनी चाहिए, उसमें लचीलापन होना चाहिए। पाठ्यक्रम निर्माण कोई स्थिर अथवा जड़ प्रक्रिया नहीं है, वह गतिशील और लचीली प्रक्रिया है, जिसमें से अनावश्यक पुरानी पाठ्य सामग्री को हटाया जा सकता है और नयी पाठ्य सामग्री को सम्मिलित किया जा सकता है।
  5. रुचि का सिद्धान्त – रुचि के अभाव में सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया व्यर्थ हो जाती है। में पाठ्यचर्या की विषय-सामग्री बालकों की रुचि के अनुकूल होनी चाहिए। भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में बालकों की रुचि भिन्न-भिन्न होती है। उन्हीं के आधार पर विषय-सामग्री एवं प्रकरणों का चयन करना चाहिए; जैसे—प्राथमिक कक्षाओं में सामूहिक खेल आधारित प्रकरण लिये जा सकते हैं, क्योंकि इस अवस्था में बालकों की रुचि खेल में अत्यधिक होती है।
  6. क्रिया का सिद्धान्त – बालक प्रकृति से क्रियाशील होते हैं। विषय-सामग्री का चयन करते समय बालकों की क्रियाशीलता का ध्यान रखना चाहिए। विषय-सामग्री कोरी सैद्धान्तिक संकल्पना न रहकर व्यावहारिक होनी चाहिए। बालकों की भूमिका पाठ्यचर्या में होनी चाहिए। हिन्दी की पाठ्यचर्या में बालकों के लिए अभिनय, विचार-विमर्श साहित्यिक प्रतियोगिताएँ लिखित एवं मौखिक आदि के लिए स्थान अवश्य रहना चाहिए।
  7. जीवन से सम्बन्ध का सिद्धान्त – बालक अपने जीवन में जिन बातों को देखता है, सुनता है, यदि पाठ्य सामग्री का सम्बन्ध उसमें होगा तो वह पाठ्य सामग्री ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी होगी, अतः बालकों की पाठ्य सामग्री का सम्बन्ध उसके वातावरण से अवश्य होना चाहिए। वह उसे अपनी जानी-पहचानी – सी लगनी चाहिए, तभी वह उसे भली प्रकार से आत्मसात् कर पायेगा।
  8. विभिन्न स्तरों की बाह्यचर्या में सुसम्बन्ध–विद्यालय शिक्षा की प्रक्रिया प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक आदि स्तरों से गुजरती है। प्रत्येक स्तर की पाठ्यचर्या भिन्न होती है। शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास के आधार पर पाठ्यचर्या में भिन्नता होना स्वाभाविक है, लेकिन इसमें स्वाभाविक विकास जुड़ाव आवश्यक है, यह ठीक उसी प्रकार का होना चाहिए जो विकास की अवस्थाओं का है। प्रत्येक कक्षा की पाठ्यचर्या अपने पूर्व कक्षा की तथा अपने बाद की कक्षा की पाठ्चर्या से जुड़ी हुई हो। इस क्रमोत्तर विकास में सरल से कठिन शिक्षण सूत्र का परिपालन आवश्यक है। हिन्दी में इससे भाषा एवं साहित्य के ज्ञान की उतरोत्तर स्वाभाविक वृद्धि होती जायेगी।

पाठ्यचर्या की विषय-सामग्री का चयन करते समय उपर्युक्त सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए।

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