भाषा विकास में बाधाओं पर प्रकाश डालें।

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प्रश्न – भाषा विकास में बाधाओं पर प्रकाश डालें। 
उत्तर – भाषा विकास में बाधाएँ

भाषा के समुचित विकास के मार्ग में कई बाधाओं के होने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। इन बाधाओं को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. विलंबित भाषा (Delayed speech)—विलंबित भाषा या विलम्बी वाणी (delayed speech) का अर्थ यह है कि किसी बालक की भाषा का विकास उसकी उम्र के अन्य बालकों से काफी देर से होता है। जैसे—पाँच वर्ष के स्कूली बालकों की शब्दावली सामान्यतः 40,000 शब्दों के लगभग तक होती है। यदि किसी पाँच वर्ष के बालक की शब्दावली इससे बहुत कम हो तो समझा जायेगा कि भाषा विकास विलंबित है।
    प्रश्न है कि भाषा विकास विलंवित क्यों हो जाता है। इस संदर्भ में किये गये अध्ययनों से कई कारणों या कारकों का पता चला है : –
    1. भाषा विकास के विलंबित होने का एक मुख्य कारण उत्तेजक वातावरण (stimulationg environment) की कमी है। जिस वातावरण में बच्चों को नये-नये शब्दों को सुनने तथा सीखने का अवसर नहीं मिलता है उसे गैर- उत्तेजक वातावरण (non-stimulating environment) कहते हैं। शहर की अपेक्षा देहात के बच्चों में भाषा विकास को विलंबित होने का यह महत्त्वपूर्ण कारण है (Berk, 1986)।
    2. भाषा विकास को विलंबित होने का एक कारण माता-पिता की ओर से मिलने वाले प्रोत्साहन (encouragement) तथा प्रेरणा (motivation) का अभाव है। जिन बच्चों की भाषा के विकास में माता-पिता दिलचस्पी नहीं लेते हैं, उनकी भाषा विलंबित हो जाती है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ बातचीत नहीं करते हैं उनके बच्चों की भाषा का विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता है और उनका शब्द-भंडार (vocabulary) काफी सीमित बन जाता है (Forenson, 1973)।
    3. विलंबित भाषा विकास का एक कारण शिक्षक के सहयोग का अभाव है। विद्यालय में जिस बालक की ओर शिक्षक ध्यान नहीं देते हैं, नये-नये शब्दों को सीखने का अवसर नहीं देते हैं, उन बच्चों का शब्द-भंडार सीमित बन जाता है और समान उम्र के अन्य बच्चों की अपेक्षा भाषा विकास देर से होता है। विलंवित भाषा का प्रतिकूल प्रभाव बालक की शैक्षिक उपलब्धि (academic achievement) पर आवश्यक रूप से पड़ता है।
    4. विलंबित भाषा या विलम्बी वाणी (delayed speech) का कारण दोषपूर्ण शिक्षालय-वातावरण (school environment) है । अध्ययनों तथा निरीक्षणों से पता चलता है कि जिस स्कूल का वातावरण अनुकूल तथा उत्तेजक नहीं होता है, उसके शिक्षार्थियों का भाषा का विकास विलंबित हो जाता है तथा उनकी शब्दावली (vocabulary) सीमित बन जाती है (mouly, 1965)।
      अतः उपर्युक्त बाधाओं (hazards) को दूर करके बच्चों के भाषा विकास को विलंबित होने से बचाया जा सकता है। यदि घर का वातावरण उत्तेजक हो, माता-पिता बच्चों के समुचित भाषा विकास के प्रति जागरूक हों, बच्चों को सदा प्रोत्साहित तथा प्रेरित करते हों, शिक्षक उनके भाषा विकास में रुचि लेते हों तथा स्कूल का वातावरण अनुकूल तथा उत्तेजित हो तो बच्चे विलंबित भाषा विकास से बच सकते हैं। अतएव, इन सारे उपयों पर अमल करके बच्चों के भाषा विकास को सामान्य बनाया जा सकता है।
  2. वाणी दोष ( Speech defects) — भाषा विकास के मार्ग में वाणी दोष भी एक बड़ी बाधा है। दोषपूर्ण वाणी (defective speech) का अर्थ है अयथार्थ वाणी (inaccurate speech)। इस तरह के दोष कभी तो किसी शब्द के अर्थ में होता है, कभी उच्चारण में दोष होता है तथा कभी वाक्य की संरचना में दोष होता है। इन तीनों तरह के दोषों की गणना वाणी-दोष के अन्तर्गत की जाती है। जैसे— हिन्दी के शब्द ‘दिन’ तथा ‘दीन’ के अर्थ क्रमशः दिवस (day) तथा गरीब (poor) हैं। जिन बालकों को इसकी जानकारी नहीं होती है वे इन शब्दों के अर्थ से सम्बन्धित दोष के शिकार आसानी से होते रहते हैं। इसे ही अर्थ सम्बन्धी दोष कहते हैं। इसी प्रकार कुछ बच्चे शब्दों के उच्चारण (prononciation) में भूल करते हैं। इस त्रुटि के कारण भी भाषा या वाणी दोषपूर्ण बन जाती है। इसी तरह कुछ बालक वाक्यों की बनावट में व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियाँ (grammatical mistakes) करते हैं। जैसे—कुछ लोग बोलते या लिखते हैं कि इन ‘हालातों’ में ऐसा हुआ । यह वाक्य व्याकरण के दृष्टिकोण से गलत है; क्योंकि ‘हालात’ शब्द बहुवचन (plural) है । अतः इसे पुनः बहुवचन बनाकर ‘हालातों’ शब्दा का प्रयोग एक बड़ी भूल है। इसी प्रकार ‘रामू ने रोटी खाया’ तथा ‘सीता ने आम खायी’ गलत वाक्य हैं। शुद्ध वाक्य होंगे ‘रामू ने रोटी खायी’ तथा ‘सीता ने आम खाया’।
  3. भाषा (वाणी ) विकृतियाँ (Speech disorders) – रेबर (Reber, 1995) के अनुसार, “भाषा विकृति या वाणी विकृति का तात्पर्य बोलने में होने वाली असमान्यताओं से है।” इनमें निम्नलिखित विकृतियाँ (disorders) मुख्य हैं-
    1. उच्चारण विकृति (Articulation disorder) — इस विकृति को स्वानिकी विकृति (phonological disorder) भी कहते हैं। इस तरह की विकृति के अन्तर्गत ध्वनि की लुप्ति (omission of sounds) ध्वनि की विकृति (distortion of sounds), तथा ध्वनि के प्रतिस्थापन (substitution of sounds) की गणना की जाती है। उच्चारण विकृति प्रारंभिक वर्षों में अधिक देखी जाती है। लेकिन बढ़ती हुई आयु के साथ घटती जाती है। श्रीवर्ग (Shriberg, 1980) के अनुसार यह विकृति किंडरगार्टेन बच्चों (kindergarten children) में अधिक पायी जाती है, परन्तु स्कूली वर्षों तक पहुँचते-पहुँचते इसमें भारी कमी देखी जाती है।
    2. हकलाना (Stuttering) – हकलाना (stammering or stuttering) एक सामान्य भाषा-विकृति है। इस विकृति में संकोचित (hesitant) तथा अवृत्तिक (repetitive) बोली देखी जाती है। यहाँ किसी शब्द को बालक रुक-रुक कर कई बार दुहराता है। जैसे—क्, क् ……. कक्का, पा, पा, पा  …….. नी, इत्यादि यह विकृति सामान्यतः दो से तीन वर्ष के बच्चों में अधिक देखी जाती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह विकृति लुप्त होती जाती है। फिर भी कुछ बालकों में यह विकृति आयु बढ़ने पर भी समाप्त नहीं होती है। कुछ बालक इतना अधिक हकलाता है कि संचार योग्यता (ability to communicate) वाधित हो जाती है। चिन्ता से हकलाने की क्रिया बढ़ती है। जब हकलाने वाले बच्चे हकलाना के सम्बन्ध में सोच कर बोलते समय भय का अनुभव करते हैं तो वे और भी अधिक हकलाते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह विकृति वंशागत होती हैं जबकि आधुनिक अधिकांश मनोवैज्ञानिक इसे अर्जित (acquired) मानते हैं। इनके अनुसार दोषपूर्ण पालन-पोषण (defective rearing practice) इस भाषा – विकृति का मुख्य कारण है।
      हकलाना सामान्यतः किशोरावस्था (adolescence) तक चिकित्सा के बिना भी समाप्त हो जाता है। फिर भी किशोरावस्था के बाद भी मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक समस्याओं के कारण यह विकृति जारी रहती है तो भाषा – चिकित्सा या वाणी चिकित्सा (speech therapy) का उपयोग करना आवश्यक बन जाता है।
    3. तुतलाना (Hisping) — बोतले समय जब किसी अक्षर का प्रतिस्थापन (subsitution) दूसरे शब्द के द्वारा हो जाता है तो इसे तुतलाना कहते हैं। जैसे— कुछ बालक रोटी के बदले लोटी और लाल की जगह राल बोलते हैं। अधिकांश मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस विकृति का कारण दैहिक है। आयु में वृद्धि होने के साथ यह विकृति समाप्त हो जाती है। लेकिन, कुछ बालकों में यह विकृति जारी रहती है। इसके लिए वाणी- चिकित्सा के उपयोग की आवश्यकता होती है।
    4. अस्पष्ट उच्चारण (Slurring) – इस वाणी – विकृति में बालक किसी शब्द का स्पष्ट उच्चारण करने में समर्थ नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, वह किसी शब्द का केवल अस्पष्ट उच्चरण ही कर पाता है, जिससे उसके अर्थ को समझने में भी कठिनाई होती है। मनोवैज्ञानिक के अनुसार इसका एक कारण दैहिक है। इसमें बालक के जबड़े, होठ आदि अंगों का समुचित रूप से काम करने की अयोग्यता है । इसके अलावा संवेगात्मक उत्तेजन (emotional stimulation) के कारण भी यह विकृति उत्पन्न हो सकती है।

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