मानव अधिकारों से क्या तात्पर्य है ? मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – मानव अधिकारों से क्या तात्पर्य है ? मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) पर प्रकाश डालें ।
(What do you mean by human rights.? Throw light on the universal declaration of human rights (1948).

उत्तर – मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो उसको उसके अस्तित्व के कारण प्राप्त रहते हैं । अतः वे इसके जन्म से ही निहित हैं। सभ्य मानव समाज वनों में निवास करने वाले जंगली जानवरों के समूह से भिन्न होता है। जंगल में केवल शक्तिशाली ही जीवित रह सकता है। सभ्य मानव समाज में प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता दी गई है ताकि वह अपनी योग्यता और क्षमता को अधिकतम स्तर तक विकसित कर सके। उसके व्यक्तित्व का समग्र विकास तभी हो सकता है जब उसे पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाएँ ।

सभी धर्म एक-दूसरे धर्मों के प्रति समानता, प्रेम और भाईचारे का भाव बनाए रखने का सन्देश देते हैं । लोकतन्त्र का सफलतापूर्वक कार्य करना सभी नागरिकों को अवसर की समानता पर निर्भर करता है । मानव अधिकारों के अन्तर्गत वे स्वतन्त्रताएँ और अधिकार शामिल है जो कि सभी व्यक्तियों को मिलने चाहिए । वंश, वर्ण, लिंग, धर्म, जाति, राष्ट्रीयता या अन्य किसी आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए ।

मानव जाति के लिए इनका अत्यन्त महत्त्व होने के कारण इन्हें कभी-कभी मूल अधिकार (Fundamental Rights), अन्तर्निहित अधिकार (Inherent Rights), प्राकृतिक अधिकार (Natural rights) तथा जन्मसिद्ध अधिकार (Birth Rights) भी कहा जाता है ।

मानव अधिकारों की सार्वभौंम घोषणा (10 दिसम्बर, 1948) – संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में जिन महान् उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है उनमें प्रायः इस तरह की भाषा मिलती है—’मानव की गरिमा और महत्त्व ‘ (Dignity and Worth of the human person), ‘पुरुषों और स्त्रियों के समान अधिकार’ (Equal rights of men and women), ‘सामाजिक प्रगति’ (Social progress) तथा ‘बेहतर जीवन स्तर’ (Better standards of life) ।

इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा की। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव अधिकारों की सुरक्षा का भार औपचारिक रूप से अपने कंधों पर ले लिया । महासभा ने सभी सदस्य राष्ट्रों से यह कहा कि वे इन अधिकारों को अंगीकृत करें और इन्हें लागू करें । तभी से हर वर्ष 10 दिसम्बर के दिन मानव अधिकार दिवस (Human Rights Day) के रूप में मनाया जाता है ।

आधुनिक युग में मानव अधिकारों की पृष्ठभूमि — आधुनिक युग में सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में 1698 में एक अधिकार पत्र (Bill of Rights) की घोषणा की गई। 1776 में अमेरिकी उपनिवेशों ने अपनी स्वतन्त्रा की घोषणा करते हुए यह कहा कि “सभी मनुष्य समान उत्पन्न हुए हैं” (All Men are Born Equal) । इस उद्घोषणा में उन्होंने तीन और अधिकारों का उल्लेख किया था “जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार तथा आनन्द प्राप्ति का अधिकार” (Life, Liberty and the Pursuit of Happiness)।

1789 में फ्रांस में एक क्रांति हुई, जो आधुनिक इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना थी । फ्रेंच क्रान्तिकारियों का जयघोष— ‘स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व’ (Liberty, Equality and Fraternity) संसार के उन सभी लोगों का मूलमन्त्र बन गया जो शोषण का शिकार थे और मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे थे। 12 अगस्त, 1789 को फ्रांस की राष्ट्रीय सभा (National Assembly) ने ‘मनुष्य के अधिकारों’ की घोषणा (Declaration of the Rights of Man) की ।

फ्रेंच अधिघोषणा का अंग्रेजी में अनुवाद करते समय टॉस पेन (Thoms Paine) ने सर्वप्रथम ‘मानव अधिकारों’ (Human Rights ) इन शब्दों का प्रयोग किया था, परन्तु मानव अधिकारों पर उन्होंने जो पुस्तकं लिखी उसका शीर्षक ‘मनुष्य के अधिकार’ (The Rights of Man) रखा गया | 1792 में मैरी वॉलेस्टन क्राफ्ट (Mary Wollstom Craft) की प्रसिद्ध पुस्तक ‘A Vindication of the Rights of Women’ (स्त्री अधिकारों की रक्षा) प्रकाशित हुई, जिसमें महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने की जोरदार वकालत की गई ।

प्रथम महायुद्ध के बाद यूरोप के कई देश लोकतन्त्रीय प्रणाली को छोड़कर तानाशाही की ओर अग्रसर हुए । तानाशाही का सबसे ज्यादा उग्र रूप इटली और जर्मनी में देखने को मिला । इटली की फासिस्ट और जर्मनी की नाजी सरकारों ने दमन और हिंसा का सहारा लिया । इन देशों में हजारों-लाखों लोगों को बिना मुकदमा चलाए नजरबन्दी शिविरों में रखा गया | नाजियों ने यहूदियों पर बेहद अत्याचार किए । द्वितीय महायुद्ध के दौरान मानव अधिकारों को वेरहमी से पैरों तलें रौंदा गया। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के जो उद्देश्य बतलाए गए है, उनमें एक उद्देश्य वह भी है कि “मूल मानव अधिकारों के प्रति सभी राष्ट्र फिर से अपनी निष्ठा की अभिपुष्टि करें” । मानव अधिकारों की संख्या 30 है ।

मानव अधिकार : एक झलक (Human Rights : At a Glance)

अनुच्छेद 1–सभी मनुष्य प्रतिष्ठा और अधिकारों की दृष्टि से स्वतन्त्र तथा समान पैदा हुए हैं।
अनुच्छेद 2 – प्रत्येक व्यक्ति इस घोषणा में वर्णित सभी अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना उपभोग करने का पात्र है ।
अनुच्छेद 3– जीवन, स्वतन्त्रता, व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार ।
अनुच्छेद 4–दासता या अधिसेविता से मुक्ति ।
अनुच्छेद 5— उत्पीड़न और निम्नकोटि के व्यवहार से मुक्ति ।
अनुच्छेद 6– विधि के समक्ष एक व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 7 – विधि के समक्ष समानता का अधिकार ।
अनुच्छेद 8— अधिकारों का अतिक्रमण होने की स्थिति में समक्ष अधिकरण द्वारा प्रतिकार प्राप्त करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 9 – मनमाने ढंग से गिरफ्तार या निर्वासित किए जाने से मुक्ति ।
अनुच्छेद 10– स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष अधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार ।
अनुच्छेद 11- किसी भी दण्डनीय अपराध आरोपित व्यक्ति को यह अधिकार कि विधि के अनुसार दोषी सिद्ध न कर दिये जाने तक उसे निर्दोष माना जाए ।
अनुच्छेद 12– किसी भी व्यक्ति को एकांतता (Privacy), उसके कुटुम्ब, गृह या पत्राचार में मनमाना हस्तक्षेप या आघात के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार ।
अनुच्छेद 13 – किसी भी व्यक्ति को अपने देश की सीमाओं के भीतर संरक्षण तथा निवास और अपने देश में जाने और अपने देश में वापस आने का अधिकार प्राप्त है ।
अनुच्छेद 14- प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश में उत्पीड़न के कारण उससे बचने के लिए दूसरे देशों में शरण माँगने तथा ऐसी शरण का उपभोग करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 15 – प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार और अपनी राष्ट्रीयता को बदलने का भी अधिकार प्राप्त है ।
अनुच्छेद 16–विवाह करने और कुटुम्ब संस्थापित करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 17 – सम्पत्ति के स्वामित्व का अधिकार ।
अनुच्छेद 18 – विश्वास और धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार ।
अनुच्छेद 19— मत की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और जानकारी प्राप्त करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 20— शान्तिपूर्ण सम्मेलन तथा आपसी मेल-मिलाप तथा किसी भी संस्था (Association) से सम्बन्ध होने की स्वतन्त्रता का अधिकार ।
अनुच्छेद 21—अपने देश के शासन में तथा निष्पक्ष चुनावों में भाग लेने का अधिकार ।
अनुच्छेद 22 – सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 23–इच्छित कार्य करने तथा अपने हितों के संरक्षण हेतु व्यवसाय संघ (Trade Unions) बनाने और उसका सदस्य बनने का अधिकार ।
अनुच्छेद 24 – विश्राम और आराम का अधिकार ।
अनुच्छेद 25 – यथायोग्य जीवन स्तर का अधिकार ।
अनुच्छेद 26- शिक्षा का अधिकार ।
अनुच्छेद 27–समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में निर्बाध रूप से भाग लेने का अधिकार ।
अनुच्छेद 28 – मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने वाली सामाजिक व्यवस्था का अधिकार ।
अनुच्छेद 29–व्यक्ति द्वारा समुदाय के प्रति कर्त्तव्यों उसके व्यक्तित्व का निर्बाध एवं पूर्ण विकास हो सके ।
अनुच्छेद 30– किसी राज्य द्वारा उपर्युक्त अधिकारों में से किसी को भी नष्ट करने के उद्देश्य से किसी क्रियाकलाप में लगने या ऊपर वर्णित अधिकारों में से किसी को भी नष्ट करने के लिए हस्तक्षेप करने के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार ।

मानव अधिकारों का व्यापक वर्गीकरण (Broad Classification of Human Rights ) — इन अधिकारों को निम्नलिखित पाँच समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है—

(1) नागरिक अधिकार,
(2) राजनीतिक अधिकार,
(3) आर्थिक अधिकार,
(4) सामाजिक अधिकार,
(5) सांस्कृतिक अधिकार
1. नागरिक अधिकार (Civil Rights ) — इन अधिकारों में मुख्य मुख्य इस प्रकार हैं—
  1. विधि के समक्ष समता का अधिकार ( all are equal before the law)। जन्म से सभी मानव समान हैं। वंश, वर्ण, लिंग, भाषा, राष्ट्रीयता और धार्मिक भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति समान अधिकारों का हकदार हैं,
  2. जीवन, स्वतन्त्रता तथा शरीर की सुरक्षा का अधिकार,
  3. दासता (slavery) से मुक्ति तथा गुलामों की खरीद और बिक्री का निषेध,
  4. मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, नजरबंदी और देश से निकाले जाने का निषेध, तथा
  5. विचार, अन्तःकरण और धर्मपालन की स्वतन्तत्रता । अनुच्छेद 5 में ‘उत्पीड़न’ यानी यन्त्रणा देने (torture) की मनाही है ।

इस अनुच्छेद के अनुसार “किसी भी व्यक्ति के साथ क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार नहीं किया जाएगा (no one shall be subjeted to curel, in human or degrading treatment) |

2. राजनीतिक अधिकार (Political Rights) — इनमें मुख्य अधिकार इस प्रकार –

  1. देश के शासन में भाग लेने और सरकारी नौकरियाँ,
  2. राष्ट्रीयता ( nationality) का अधिकार अर्थात् किसी को भी मनमाने ढंग से राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जाएगा, तथा
  3. शासन की सत्ता का आधार जनता की इच्छा होगी (will of the people shall be the basis of the authority of government) । जनता की इच्छा को जानने का सर्वोत्तम साधन बालिग मताधिकार पर आधारित समय-समय पर होने वाले चुनाव हैं |

3. आर्थिक अधिकार (Economic Rights) — इसमें मुख्य अधिकार इस प्रकार हैं—

  1. सम्पत्ति रखने का अधिकार,
  2. ऐसे आर्थिक और सामाजिक अधिकार जो व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य हैं
  3. काम का अधिकार और समान कार्य के लिए समान वेतन । इसमें विश्राम और अवकाश का अधिकार तथा ट्रेड यूनियनें (श्रमिक या व्यावसायिक संघ) बनाने का अधिकार भी शामिल है तथा
  4. बेरोजगारी की दशा में सामाजिक सुरक्षा (Social security) का अधिकार ।

4. सामाजिक अधिकार (Social Rights ) — इनमें मुख्य रूप से ये अधिकार शामिल हैं—

  1. विवाह करने और घर बसाने का अधिकार । विवाह दोनों पक्षों (पुरुषों एवं स्त्री) की पूर्ण सम्मति से किया जाएगा,
  2. कुटुम्ब समाज की प्राथमिक इकाई है, जिसे राज्य और समाज का पूर्ण संरक्षण मिले तथा
  3. शिक्षा का अधिकार । कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी । शिक्षा का लक्ष्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना जगाना है ।

5. सांस्कृतिक अधिकार ( Cultural Rights ) – प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सांस्कृतिक जीवन में मुक्त रूप से भाग लेने, कलाओं का आनन्द लेने और वैज्ञानिक प्रगति के फायदों में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है ।

मानव अधिकारों के घोषणा पत्र का महत्त्व (Importance of the Human Rights Declaration ) – मानव अधिकारों के घोषणा पत्र का महत्त्व नीचे दिया गया है—

  1. मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुसार, “मानव अधिकारों का एक ऐसा सामान्य स्तर निर्धारित करने की कोशिश की गई जिस तक पहुँचना सभी राष्ट्रों का उद्देश्य होना चाहिए । ” ये अधिकार सभी लोगों और सभी राष्ट्रों के लिए मान्य हैं । इसमें सन्देह नहीं कि विभिन्न देशों के बीच बहुत-सी विभिन्नताएँ हैं। उनका सामाजिक-आर्थिक स्तर भी एक-सा नहीं है, पर मानव अधिकारों का तो मतलब ही यह है कि ये अधिकार सभी को मिलने चाहिए । लोगों के बीच वंश, वर्ण, लिंग, भाषा या मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा ।
  2. मानव अधिकारों के अन्तर्गत पराधीन राष्ट्रों के ‘स्वनिर्णय के अधिकार’ (Right to Self determination) को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। दूसरे शब्दों में किसी भी राष्ट्र को यह अधिकार नहीं कि वह “अन्य किसी देश पर अपना शासन स्थापित करके उसके धन-जन या संशोधनों का शोषण कर सके ।”
  3. मानव अधिकारों का हनन अब किसी भी राष्ट्र का अन्दरूनी मामला नहीं रह गया है । अधिकारों का हनन करने वाला राष्ट्र यह नहीं कह सकता कि बाहरी ताकतों का इससे कुछ लेना-देना नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग ने अधिकारों का जो मसौदा तैयार किया, सभी सदस्य राष्ट्रों ने उसकी अभिपुष्टि की है। इन्होंने यह प्रतिज्ञा की है कि वे मानवाधिकारों के प्रति सम्मान जगाएँगे और उनका पालन कराएँगे ।
  4. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UN Human Rights Commission), एमनेस्टी इण्टरनेशनल (Amenesty International), ह्यूमन राइट्स वाच (Human Rights Watch), एशिया वाच (Asia Watch) जैसी संस्थाएँ । नए-नए अधिकार देने की नीति अपनाई । भारत, कोस्टारिका, हैटी, कैमरून और टागो आदि अनेक देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रसंविदा पन्नों पर हस्ताक्षर किए हैं ।
  5. मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के कारण दुनिया के अधिकांश देशों ने अपने संविधानों में मौलिक अधिकारों को शामिल करने की कोशिश की । फलस्वरूप, सरकारें मनमाने ढंग से भूल अधिकारों का हनन नहीं कर सकतीं । सरकारें बदलती रहती हैं, पर सरकार चाहे किसी दल की भी हो, उसे इन अधिकारों के अनुरूप ही अपनी नीतियाँ ढालनी पड़ेंगी। भारतीय संविधान ने प्रायः उन सभी अधिकारों को स्वीकार किया है जिनका मानव अधिकार घोषणा में वर्णन है। द्वितीय महायुद्ध के बाद जब बहुत से देश आजाद हो गए तो उन्होंने अपनी-अपनी जनता को मानवाधिकारों को मानीटर करने का काम कर रही है। दूसरे शब्दों में, ये संस्थाएँ उन सभी शिकायतों की छानबीन करती हैं जो मानव अधिकार के हनन से सम्बन्ध रखती है । इन संस्थाओं के कारण ज्यादा-से-ज्यादा लोग यह जानने लगे हैं कि किस देश में क्या हो रहा है और मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जाएँ ।

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