मानसिक मंदता की रोकथाम पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – मानसिक मंदता की रोकथाम पर प्रकाश डालें ।
(Throw light on the prevention of mental retardation.) 
उत्तर— रोक-थाम (Prevention)– निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में मानसिक मंदता का रोक-थाम किया जा सकता है –
1. प्रसवपूर्व की अवधि,
2. प्रसव के दौरान की अवधि और
3. प्रसवोत्तर की अवधि ।
  1. गर्भवती महिला की समय-समय पर डॉक्टरी जाँच अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। गर्भवती महिला को पर्याप्त संतुलित आहार देना चाहिए । यदि पहले हुई प्रसूतियों में कोई विकृति हो या कई बार गर्भपात हुए हों तो उसे अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए तथा उसे अतिरिक्त जाँच के लिए संपूर्ण सुविधाएँ मुहैया कराना चाहिए ।
  2. अगर गर्भवती महिला यौनजनित रोगग्रस्त है तो प्रसव होने से पहले उसका इलाज कराना चाहिए ।
  3. गर्भवती महिला को डॉक्टरी सलाह के बिना दवाईयाँ नहीं लेनी चाहिए ।
  4. यदि गर्भवती महिला गर्भपात कराना चाहती है तो उसे गर्भपात किसी योग्य डॉक्टर से करवाना चाहिए और गर्भपात के लिए स्थानीय तरीकों का सहारा नहीं लेना चाहिए ।
  5. गर्भवती महिला को विशेषतः गर्भावस्था की प्रारंभिक अवस्थाओं में एक्स-रे नहीं करवाने चाहिए ।
  6. गर्भवती महिला को खसरा और टेटनस जैसे रोगों से बचाव के लिए टीके लगवाए जाने चाहिए ।
  7. यदि गर्भवती महिला को मधुमेह, उच्च रक्तचाप है या उसे बार-बार दौरे पड़ते हों तो उसकी निरंतर किसी योग्य डॉक्टर से अवश्य जाँच करवाते रहना चाहिए ।
  8. गर्भावस्था के दौरान मेहनत वाले काम जैसे भारी वजन उठाना, विशेषतः खेतों में, और अन्य कार्य जिनसे दुर्घटना होने की संभावना हो जैसे फिसलन वाली जगह पर चलना, छोटे स्टूलों और कुर्सियों पर चढ़ने से बचाना चाहिए ।
  9. यदि बच्चे में आनुवंशिक समस्या है तो गर्भवती महिला को ऐसे स्थान पर भेजा जाए जहाँ गर्भ में ऐसा अपसामान्यताओं का पता लगाने के परीक्षण उपलब्ध हों।
2. प्रसव के दौरान की अवधि (During Natal Period) :
  1. प्रसव के दौरान गर्भवती महिला का उचित देखभाल करना चाहिए ।
  2. प्रसव प्रशिक्षित चिकित्सकों से करवाना चाहिए। विषमताओं का प्रारंभिक अवस्था में अवश्य पता लगा लेना चाहिए और डॉक्टर को उस स्थिति के बारे में बता देना चाहिए । अगर संभव हो तो प्रसव अस्पताल में ही करवाना चाहिए।
  3. गर्भाशय में गर्भ की असामान्य स्थिति के मामले में, प्रसव किसी योग्य डॉक्टर से अवश्य करवाया जाना चाहिए ।
  4. यदि गर्भवती महिला का योनिद्वार छोटी हो ऐसी स्थिति में अस्पताल में योग्य सर्जन के माध्यम से ऑपरेशन करवाकर बच्चा जनना चाहिए ।
  5. जन्म के समय यदि बच्चा नीला है या बच्चा देर से रोता है तो बच्चे को तत्काल ऑक्सीजन अवश्य देनी चाहिए ।
  6. अगर गर्भस्थ शिशु का सिर उल्टी अवस्था में हो तो डॉक्टरी सहायता से इसे ठीक करवा लेना चाहिए ।
  7. यदि कोई जन्मजात अपसामान्यता दिखाई पड़ती है तो बच्चे को देखरेख के लिए विशेषज्ञ के पास भेजा जाना चाहिए ।
3. प्रसवोत्तर अवधि (During Post-natal Period) :
  1. बच्चे को डिप्थीरिया, पोलियो, टिटनस, खसरा, तपेदिक और कुकुरखाँसी जैसे सभी संक्रामक रोगों से बचाव के टीके लगवाना चाहिए ।
  2. यदि बच्चे को बहुत तेज बुखार है तो उस पर ठण्डे पानी की पट्टी रख कर ज्वर को तत्काल कम करने का प्रयास करना चाहिए ।
  3. यदि बच्चे को मिरगी के दौरे पड़ते हों तो उसे नियंत्रित किया जाना चाहिए और आगे दौरे न पड़े इसके लिए दवाई आदि देना चाहिए ।
  4. बच्चों को मस्तिष्कीय शोध से बचाना चाहिए तथा उसे मस्तिष्कशोध के अन्य रोगियों के प्रभाव में नहीं लाया जाना चाहिए ।
  5. बच्चे को पर्याप्त पोषक आहार दिया जाना चाहिए ताकि उनका उचित मानसिक विकास हो सके ।
  6. यदि बच्चा छोटे या बड़े सिर वाला अथवा ऐंठे हुए अंग वाला पैदा होता है तो उसे आगे होने वाली अशक्तताओं से बचाव के लिए डॉक्टर के पास ले जाया जाना चाहिए ।
  7. यदि बच्चे को पहले छः माह के दौरान उचित अवस्था प्राप्त करने में काफी विलम्ब होता है तो बच्चे की विकासात्मक अशक्तताओं के संपूर्ण मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञ से जाँच कराना चाहिए ।

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