राज्य की नीति के निदेशक सिद्धान्तों के शिक्षा में महत्त्व की विवेचना करें ।

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प्रश्न – राज्य की नीति के निदेशक सिद्धान्तों के शिक्षा में महत्त्व की विवेचना करें ।
(Discuss the significance of the directive Principles of state policy for eduction.)
उत्तर – राज्य की नीति के निदेशक सिद्धान्तों का शिक्षा में महत्त्व — यदि हम इन सिद्धान्तों पर ध्यानपूर्वक दृष्टिपात करें तो पाएँगे कि ये निदेशक सिद्धान्त भारतीय समाज के आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं ।
15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो हमारे देश का सामाजिक और आर्थिक जीवन अस्त-व्यस्त था । संविधान निर्माताओं ने यह अच्छी तरह जान लिया था कि यदि भारत की उन्नति करनी है तो गरीबों, अशिक्षितों और पिछड़ी जातियों की हालत को सुधारना जरूरी है । लोगों की आर्थिक हाल में सुधार करने के लिए स्पष्ट कदम उठाने तथा सरकार द्वारा निश्चित निर्देश देने की जरूरत है । इस जरूरत को पूरा करने के लिए संविधान में नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को शामिल किया गया ।
वास्तव में ये सिद्धान्त केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए निर्देश हैं। प्रत्येक सरकार कानून बनाते समय इन निर्देशों पर अमल करती है । इन सिद्धान्तों के कारण ही सरकार ने अमीरी और गरीबी के अन्तर को कम करने के लिए अनेक कानून बनाए हैं।
धारा 38 (1) में सामाजिक व्यवस्था का आधार न्याय बताया गया है। न्याय का सभी क्षेत्रों से गहरा सम्बन्ध शिक्षा का क्षेत्र भी आ जाता है
शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित धाराओं के सन्दर्भ में केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों ने कई अहम् कदम उठाए हैं। इन धाराओं का विवरण ऊपर दिया गया है ।
(1) धारा 38 (1) — कल्याण सम्बन्धी कार्य ।
(2) धारा 40, 243 – पंचायती राज तथा प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था ।
(3) धारा 41 – शिक्षा का विशेष स्थितियों में अधिकार देना ।
( 4 ) धारा 45 – शिशु शिक्षा तथा पालन-पोषण करना ।
(5) धारा 46 – अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करना ।
( 6) धारा 47 – स्कूलों में दोपहर के भोजन की व्यवस्था करना ।
(7) धारा 48A – पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था  करना ।
(8) धारा 49 – स्मारकों का संरक्षण ।
इनमें कोई सन्देह नहीं है कि अभी बहुत कार्य करना बाकी है।
संक्षेप में निदेशक तत्त्वों का महत्त्व इस प्रकार है—
(1) नागरिकों को आर्थिक व सामाजिक न्याय दिलाने के ये सिद्धान्त प्रकाश स्तम्भ हैं ।
(2) नागरिकों को आर्थिक व सामाजिक समता दिलाने के आधार हैं ।
(3) देश की प्रशासनिक अवस्था में सुधार के मार्गदर्शक हैं ।
(4) नागरिकों का विकास करके कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने की नींव हैं ।
(5) सरकारों की उपलब्धियाँ परखने के मापदण्ड हैं ।
(6) राष्ट्रीय एकता के लिए उपयोगी सूत्र ।
(7) शैक्षिक लोकतन्त्र के आधारभूत स्तम्भ हैं ।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिए मार्गदर्शन हैं ।

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