राष्ट्रीय ज्ञान अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है ? भारत में राष्ट्रीय आध ारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकता पर प्रकाश डालें ।
उत्तर— इसमें कोई सन्देह नहीं है कि 21 वीं शताब्दी में ज्ञान को सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा माने जाने लगा है । यूनेस्को की रिपोर्ट (2000) तथा भारत के राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2005. की रिपोर्ट) में ज्ञान पर विशेष बल दिया गया है ।
ज्ञानवान अर्थव्यवस्था का अर्थ एक ऐसी अर्थव्यवस्था से है जो सम्पत्ति के सृजन तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाए ।
ज्ञान के मुख्य तत्त्व इस प्रकार माने जा सकते हैं-
(i) तथ्यों / सूचनाओं का एकत्रीकरण,(ii) तथ्यों का छाँटना,(iii) तथ्यों का विभेदीकरण,(iv) तथ्यों का मंथन,(v) तथ्यों का वर्गीकरण,(vi) तथ्यों का सामान्यीकरण
एक समय या जबकि भारत को ज्ञान के क्षेत्र में जगद्गुरु कहा जाता था । अपनी ज्ञान बढ़ाने हेतु अनेक देशों के छात्र तथा विद्वान भारत में ज्ञान की खोज के लिए आते थे । भारत से ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् आने को गौरवशाली मानते थे। यदि आज की शब्दावली का प्रयोग किया जाए तो वे ‘India Returned’ कहने में गौरव अनुभव करते थे ।
ज्ञान के साथ-साथ भारत में धन-दौलत का भी भण्डार था । ज्ञान केवल ज्ञान के लिए नहीं था, भौतिक सम्पदा के लिए भी था। इसी ज्ञान के उपयोग से भारत को सोने की चिड़िया (Golden Sparow) की संज्ञा दी जाती थी। इसी कारण से विदेशी इसे लूटने के लिए भी आते रहे ।
ज्ञान से एक ओर तो मोक्ष की प्राप्ति होती है तो दूसरी ओर भौतिक विकास भी ज्ञान द्वारा इन दोनों के संतुलन पर भी बल दिया जाता है अर्थात् संसार में रहते हुए भी इसके भोग-विलास से दूर रहना, नियमित तथा सदाचारी जीवन व्यतीत करना ।
भारत में राष्ट्रीय ज्ञान अर्थव्यवस्था की निम्न कारणों से आवश्यकता है –
- संसार भर की आर्थिक व्यवस्थाओं के भूमण्डलीकरण से सभी स्तरों प्रतिस्पर्द्धा में व्यापक वृद्धि हुई है ।
- तकनीकी में तीव्र परिवर्तन के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से भारतीय विश्वविद्यालयों की सीधी प्रतिस्पर्द्धा ।
- विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अनुसंधान कार्यों में बढ़ती रुचि ।
- सूचना के क्षेत्र में बढ़ती जन- रुचि के साथ-साथ ज्ञान – आधारित सामाजिक व्यवस्था के उत्तरदायित्व में वृद्धि हुई है।
- कौशल परिवर्द्धन की बढ़ती माँग ने शिक्षा का दायरा बढ़ाया है ।
- बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के संरक्षण को लेकर बढ़ती चिन्ता शिक्षा सेवाओं से जुड़ी हुई है।
- ज्ञान-आधारित आर्थिक व्यवस्था में सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देगी ।
- सहगामी कार्य-संस्कृति के प्रति प्रतिस्पर्द्धा में वास्तविक वृद्धि |
- नेटवर्किंग नीतियों में तीव्र गति के परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षण की व्यावहारिक परिस्थितियों में भी परिवर्तन हुआ ।
- ज्ञान जन-सेवाओं व उत्पाद की बढ़ती माँग एवं पूर्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने आदर्श ज्ञानवान समाज का चित्रण इस प्रकार किया है’जहाँ मस्तिष्क आशंकाओं से परे है और सिर है ऊँचा, जहाँ ज्ञान मुक्त है,
जहाँ विश्व नहीं है खण्डित,
मेरे पिता, ऐसी भूमि में मेरे देश को जाग्रत करो’
(“Where the mind is without fear and the head is hold high where , where the would had not been broken. knowledege is freeIn that heaven of freedom, my Father, let my country.awake”).
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