राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986 तथा 1992) में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की शिक्षा की विवेचना कीजिए ।
प्रश्न – राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986 तथा 1992) में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की शिक्षा की विवेचना कीजिए ।
(Discuss the national education policy ( 1986 and 1992) on the education of SCs and STs.)
उत्तर – राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986-1992) में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की शिक्षा –
अनुसूचित जातियों की शिक्षा – अनुसूचित जातियों के शैक्षिक विकास में मुख्य जोर इस बात पर दिया जाएगा कि सभी स्तरों पर उन्हें उन लोगों के बराबर लाया जा सके जो अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित नहीं है ।
इस मकसद के तहत नई नीति में निम्न प्रस्ताव रखे गए हैं—
- गरीब परिवारों को इतना प्रोत्साहन दिया जाए कि वे अपने बच्चों को 14 साल की उम्र तक नियमित रूप से स्कूल भेज सकें ।
- सफाई कार्य, चर्म उतारने तथा चर्म कमाने जैसे व्यवसायों में लगे परिवारों के बच्चों के लिए मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना पहली कक्षा और उसके आगे शुरू की जाए। ऐसे परिवारों की आय पर ध्यान दिए बिना, सभी बच्चों को इस योजना में शामिल किया जाएगा तथा उनके समयबद्ध लक्ष्य – कार्यक्रम शुरू किए जाएँगे ।
- अनुसूचित जातियों के बच्चों के प्रवेश, पढ़ाई जारी रखने और सफलतापूर्वक पढ़ाई पूरी करने की प्रक्रिया में गिरावट रोकने को सुनिश्चित करने के लिए सूक्ष्म आयोजना और निरन्तर पड़ताल होनी चाहिए ।
- अनुसूचित जातियों से शिक्षकों की नियुक्ति पर विशेष ध्यान दिया जाए ।
- जिला मुख्यालयों में जनुसूचित जनजातियों के छात्रों के लिए छात्रावास सुविधाएँ क्रमिक रूप से बढ़ाई जाएँ ।
- स्कूल भवनों, बालवाड़ी और प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र का स्थान चुनते समय अनुसूचित जाति की पूर्ण भागीदारी की सम्भावना का पूरा ध्यान रखा जाए ।
- अनुसूचित जाति को भरपूर शैक्षणिक सुविधाएँ दिए जाने में एन. आर. ई. पी. और. एल. ई. जी. पी. संसाधनों का उपयोग किया जाए ।
- शिक्षा के प्रति अनुसूचित जाति में पूरा उत्साह पैदा करने के लिए लगातार नए तरीके खोजने की कोशिशें जारी रखी जाएँ।
अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा (The Education of the Scheduled Tribes ) – आदिवासियों को अन्य लोगों की बराबरी पर लाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जायेंगे –
- आदिवासी इलाकों में प्राथमिक शालाएँ खोलने के काम को पहला महत्त्व दिया जाएगा । शिक्षा के लिए सामान्य निधि तथा एन. आर. ई. पी. और आर. एल.ई.जी.पी. जनजातीय कल्याण योजनाओं आदि के अन्तर्गत प्राथमिकता के आधार पर इन क्षेत्रों में स्कूल भवनों का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा ।
- आदिवासियों के माहौल का अपना अलग रंग होता है। उनकी विशिष्टता प्रायः अन्य बातों के साथ अपनी बोलियों में निहित है। पाठ्यक्रम में इनकी अहमियत को नहीं भुलाया जाना चाहिए | पढ़ाई की शुरुआत ही उनकी अपनी भाषा से होनी चाहिए आगे चलकर प्रादेशिक भाषा की खाई को पाटा जा सकता है ।
- पढ़े-लिखे और प्रतिभाशाली आदिवासी युवकों को प्रशिक्षण देकर अपने क्षेत्र में ही शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।
- बड़ी तादाद में आवासीय विद्यालय और आश्रम विद्यालय खोले जाएँ ।
- आदिवासियों के लिए उनकी जीवन शैली और खास जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रेरणादायी योजनाएँ तैयार की जाएँगी । उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्तियों में तकनीकी और अच्छी व्यावसायिक किस्म की पढ़ाई को ज्यादा महत्त्व दिया जाए । मनोवैज्ञानिक-सामाजिक प्रतिबन्धों को दूर करने के लिए तथा विभिन्न पाठ्यक्रमों में उनके कार्य निष्पादन का सुधार करने के लिए विशेष उपचारात्मक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाएगी ।
- आँगनबाड़ियाँ, अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र और प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र आदिवासी बहुल इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर खोले जाएँगे ।
- हर कक्षा के लिए पाठ्यक्रम तय करते हुए इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि आदिवासी छात्र अपनी बेशकीमती तहजीबी पहचान के प्रति सचेत हों और उनकी सृजनात्मक प्रतिभा का उपयोग हो सके ।
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