लेखन शिक्षण के साधन बताइए ।
सुलेख – सुन्दर लेखन की प्रवृत्ति विकसित करने का एक उत्तम साधन सुलेख है । कुछ समय पूर्व प्रारम्भिक विद्यालयों में हिन्दी भाषा शिक्षण में यह बहुत प्रचलित थी। अध्यापक व छात्र इसमें काफी रुचि लेते थे। किन्तु आजकल इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है । जबकि आजकल स्टेशनरी स्टोर पर सुलेख की मुद्रित कॉपियाँ सुगमता से प्राप्त हो जाती हैं । इनमें ऊपर की पंक्ति में सुन्दर, सुडौल और बड़े-बड़े आकार के अक्षर मुद्रित रहते हैं। नीचे की पंक्तियाँ रिक्त रहती हैं। छात्र इन रिक्त पंक्तियों में ऊपर की पंक्ति की नकल करते हैं तथा मुद्रित अक्षरों की ही भाँति सुन्दर, सुडौल और बड़े-बड़े आकार के अक्षर बनाने का अभ्यास करते हैं ।
प्रतिलिपि – प्रतिलिपि के लिए अनुलिपि की तरह कॉपियाँ या पुस्तिकाएँ उपलब्ध नहीं होतीं और न ही इसकी आवश्यकता होती है। प्रतिलिपि के अन्तर्गत छात्र प्रतिदिन अध्यापक के निर्देशानुसार या स्वेच्छा से किसी पुस्तक या पत्रिका के किसी निर्दिष्ट अंश की प्रतिलिपि या नकल अपनी कॉपी में करते हैं । तद्नुसार छात्रों को लेखन सुधार सम्बन्धी आवश्यक निर्देश देते हैं। इस प्रकार छात्र को सुन्दर व सही लिखने का अभ्यास कराने की दृष्टि से प्रतिलिपि की महती उपयोगिता है ।
श्रुतलेख–लेखन – अभ्यास की दृष्टि से श्रुतलेख का विशेष महत्त्व है । इसमें छात्र व अध्यापक दोनों की सहभागिता होती है। अध्यापक किसी गद्य-खण्ड या पद्य-खण्ड को बोलता है और छात्र उसे सुन्दर सुन्दर लिखते हैं। श्रुतलेख के अभ्यास से छात्रों को – शीघ्रतापूर्वक व सुन्दर लिखने का अभ्यास होता है। उनमें शुद्ध व सुन्दर लिखने की प्रवृत्ति विकसित होती है। साथ ही श्रुतलेख द्वारा अध्यापक छात्र के लेखन की जाँच कर सकता है। छात्रों के श्रुतलेख का परीक्षण करके एक अध्यापक जान सकता है कि किस-किस छात्र के लेखन में सुन्दरता, सुडौलता, शीघ्रता, शुद्धता तथा एकाग्रचित्तता का गुण विद्यमान है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here