लेखन शिक्षण में सुलेख का महत्त्व बताते हुए उसका विस्तृत परिचय दीजिए |
अच्छा लेख, अच्छे व्यक्तित्व का द्योतक होता है । लेख में सुधार का तात्पर्य हैव्यक्तित्व में सुधार। सुलेख जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। छात्रों के लिए तो इसका महत्त्व और भी अधिक है । परीक्षा में सुलेख में लिखने पर अच्छे अंक प्राप्त होते हैं और खराब लेख से कम अंग प्राप्त होते हैं। परीक्षक की दृष्टि सर्वप्रथम सुन्दर लेख की ओर ही जाती है ।
उच्च सरकारी पद प्राप्त करना हो, किसी व्यावसायिक संस्था में प्रवेश पाना हो, सर्वत्र सुलेख को ही महत्त्व दिया जाता है। सुलेख के कारण पारस्परिक सम्बन्ध मधुर बनते हैं | महापुरुषों ने सदैव सुलेख का ही गुणगान किया है। गाँधीजी कहा करते थे कि “हस्तलिपि का खराब होना अधूरी पढ़ाई की निशानी है । ”
अध्यापक और सुलेख – अध्यापक को सुलेख सम्बन्धी समस्त नियमों की जानकारी और उसके उपयोग में सतर्कता रखनी आवश्यक है, अन्यथा बालक की सुलेख सम्बन्धी दुर्बलता उसे जीवन-भर दुःख देगी और वह अपने बुरे लेख पर जीवन भर पछताता रहेगा।
सुलेख की परिभाषा – सुलेख का अभिप्राय है— सु + लेख, अर्थात् अच्छा लेख । अच्छे लेख का आशय वह लिखावट है जो अच्छे ढंग से लिखी गई हो, तो अच्छी प्रकार से पढ़ी जा सके और जिसे अच्छी प्रकार से समझा जा सके। जैसे लड़ी में पिरोये हुए मोतियों में चमक होती है, अनुपात होता है, संगठन होता है तथा कला होती है, उसी प्रकार सुन्दर लेख में भी आकर्षण, कला और संगठन होता है ।
1. बालक आकर्षक और सुडौल अक्षर लिखने को प्रवृत्त हो2. बालक के हाथ, मस्तिष्क और हृदय में समन्वय हो।3. छात्रों को इन्द्रिय शिक्षण मिले ।4. बालक में सौन्दर्यनुभूति की भावना जाग्रत हो ।5. छात्रों के जीवन में सुव्यवस्था आये ।6. विद्यार्थी व्यावहारिक जीवन के लिए तैयार हो ।7. छात्र सुन्दर और सुपाठ्य लिखते समय समुचित गति का निर्वाह कर सकें ।
बैठने का ठीक तरीका – बैठने के ढंग का भी लिखने पर बड़ा प्रभाव पड़ता है । यह सावधानी रखनी चाहिए कि बालक सीधे बैठे, झुके नहीं। लिखते समय रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए, झुकी हुई नहीं । चाहे बालक अपने आगे पड़ी चौकी पर कॉपी अथवा तख्ती रखकर लिखे, चाहे वीरासन की स्थिति में घुटनों पर कॉपी या तख्ती रखकर लिखे, उसकी आँखें कॉपी अथवा तख्ती से एक फुट दूर अवश्य हो ।
कलम को ठीक ढंग से पकड़ना – प्रारम्भ में बालकों से सरकण्डे की कलम से ही लिखवाना चाहिए। कलम या लेखनी 45 अंश पर कटी होनी चाहिए । इसके अतिरिक्त कलम पकड़ने का ढंग भी ठीक होना चाहिए। इसका लेख की सुन्दरता और गति पर प्रभाव पड़ता है ।
अक्षरों की सुन्दरता तथा सुडौलता – सुन्दर तथा सुडौल अक्षरों से तात्पर्य है, अक्षर के प्रत्येक अंग का ठीक-ठीक अनुपात होना चाहिए। अक्षर न बहुत छोटा, न बहुत बड़ा और न बेढंगे रूप से ही लिखा जाए | लेख सुन्दर हो, इसके लिए आगे लिखी बातों भी ध्यान में रखनी होगी –
(i) कागज के दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे- चारों ओर कुछ स्थान छोड़कर ही लिखा – जाए।(ii) दो शब्दों के बीच में कम से कम एक अक्षर जितना अन्तर अवश्य होना चाहिए।(iii) दो पंक्तियों के बीच में कुछ अन्तर अवश्य होना चाहिए ।(iv) अक्षर सीखे खड़े रूप में लिखे जाएँ ।
(i) जो कुछ लिखा जाता है, वह सुन्दर और आकर्षक होता है ।(ii) अक्षर सुडौल और आनुपात होते हैं ।(iii) जो कुछ भी लिखा जाता है, वह स्पष्ट होने के कारण अच्छी प्रकार से पढ़ा जा सकता है ।(iv) अक्षरों का झुकाव दाहिनी ओर या बायीं ओर नहीं होता । वे बिल्कुल सीधे होते हैं।(v) पंक्तियाँ टेढ़ी न होकर सीधी होती हैं ।(vi) समान रूपों वाले अक्षर; जैसे—म और य, भ और म, ध और घ – सुपाठ्य लिखे जाते हैं ।(vii) दो शब्दों के बीच, दो पंक्तियों के बीच तथा अनुच्छेदों के बीच उचित अन्तर होता है ।
(क) यथासम्भव विद्यार्थियों के सुलेख- कार्य को संशोधन उनके सामने ही किया जाए।(ख) अशद्ध लिखे गये शब्द या अक्षर को, अध्यापक कॉपी के हाशिए में अथवा अक्षर के पास ही सही लिखें ।(ग) संशोधन के लिए अध्यापक की कलम, छात्र के कलम के अनुपात की हो।(घ) अशुद्ध अक्षर पर लाल स्याही के कलम द्वारा लिखकर संशोधन करना; उत्तम विधि है । इससे बालक को यह विदित हो जाएगा कि उनके अक्षर की बनावट में कहाँ त्रुटि है ।
सुलेख का मूल्यांकन – सुलेख के मूल्यांकन में इन दो बातों का ध्यान रखा जाएगा –
(क) लेख की गति और (ख) लेख की गुणवत्ता (Quality) ।
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