व्यक्तित्व से क्या तात्पर्य हैं ? इसकी संरचना पर प्रकाश डालें।

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प्रश्न – व्यक्तित्व से क्या तात्पर्य हैं ? इसकी संरचना पर प्रकाश डालें।
(What do you mean by personality? Throw light on its structure.) 

उत्तर- व्यक्तित्व एक जटिल प्रत्यय है तथा अपनी इसी जटिलता और गूढ़ता के कारण काफी समय तक मनोवैज्ञानिकों द्वारा यह उपेक्षित विषय रहा है। इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास क्रेवलिन, जेने, फ्रायड आदि शिक्षा – शास्त्रियों द्वारा प्रारम्भ किये गये । वस्तुतः व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के पर्सनेलिटी शब्द का पर्याय है जो लैटिन (Latin) भाषा के पर्सोना (Persona) शब्द से लिया गया है। पर्सोना का अंग्रेजी में पर्याय Mask है जो नकाब या मुखावरण कहलाता है। ग्रीक अभिनेता इसे अपने कार्य या चरित्र के अनुरूप अभिनय से पूर्व पहना करते थे। पर्सोना से सम्बन्धित होने के कारण प्रारंभ में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप-रंग, आकार आदि से ही लिया जाता था। परन्तु व्यक्तित्व की इस व्याख्या को हम पूर्ण एवं सन्तोषप्रद नहीं मान सकते, क्योंकि मनुष्य की आकृति ही मनुष्य के व्यक्तित्व का बोध नहीं कराती। यदि ऐसा मान भी लें तो ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनमें हम देखते हैं कि कुछ मनुष्यों का बाह्य रूप बिल्कुल आकर्षक नहीं होता परन्तु उनका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक होता है, जैसे— गांधी, टैगोर, शास्त्री, विनोबा आदि । स्पष्ट है कि व्यक्तित्व मात्र बाह्र बनावट से ही निर्धारित नहीं होता है, अपितु, उसके लिये कुछ आन्तरिक गुणों का होना भी अत्यन्त आवश्कय होता है। आन्तरिक गुणों के अभाव में व्यक्तित्व अपूर्ण समझा जाता है। कुछ व्यक्ति व्यक्तित्व को एक अन्य अर्थ में लेते हैं, उनके अनुसार दूसरों को प्रभावित करना ही अच्छा व्यक्तित्व है जिसे वे ‘सामाजिक उद्दीपक मूल्य’ (Social stimulus value) के नाम से सम्बोधित करते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम यह कहें कि प्रतीक एक बड़ा प्यारा आकर्षक व्यक्तित्व रखता है तो हमारा यह कथन एकांगी है क्योंकि यहाँ हम व्यक्ति के आन्तरिक गुणों की उपेक्षा कर रहे हैं और मात्र व्यक्ति के रंग रूप, वेश-भूषा, चेहरे-मोहरे के नयन-नक्श आदि को ही व्यक्तित्व का पैमाना मान बैठे हैं। प्रायः सुना जाता है कि अमुक व्यक्ति का कोई व्यक्तित्व नहीं है और अमुक व्यक्ति का आकर्षक एवं चुम्बकीय (Magnetic) व्यक्तित्व है। जिन व्यक्तियों में व्यक्तित्व के शील गुणों (Traits) की मात्रा का अभाव या न्यूनता होती है उन्हें व्यक्तित्व-विहीन और जिनमें बाहुल्य होता है उन्हें वैक्तिकता युक्त कहा जाता है।

व्यक्तित्व की व्याख्या उसके निर्धाकर तत्त्वों का योग कहकर करना किसी भवन का वर्णन उसके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री बतला कर करने के समान है। सब इमारतों में सामग्री वही प्रयुक्त होती है, फिर भी, वह एकरूप नहीं होती, जिसका कारण सामग्री की मात्रा की भिन्नता एवं उस सामग्री का अलग-अलग प्रकार से संयोजन होना है। यदि व्यक्तित्व मात्र शील गुणों का योग होता तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी वैयक्तिता नहीं होती और अपने पर्यावरण के प्रति व्यवहार प्रतिमानों में भी भिन्नता न पाई जाती है। अतः व्यक्तित्व के गुणों, उनके संकलन एवं समायोजन आदि को ध्यान में रखते हुए विद्वानों ने इस प्रत्यय को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है –

वुडवर्थ के अनुसार, “व्यक्तित्व, व्यक्ति की सम्पूर्ण गुणात्मकता हैं। “
गिलफोर्ड के अनुसार, “हम व्यक्तित्व को शील गुणों के एक संकलित नमूने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। “
“We may define personality as an integrated pattern of traits.”
मार्गन एवं गिलीलैंड के अनुसार, हम जो कुछ हैं, उस सबका योग, व्यक्तित्व के नाम से पुकारा जाता है। “
“The sum total of all, that we are, is called personality.”
मन के अनुसार, ” व्यक्तित्व, एक व्यक्ति के संगठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है । “
“Personality may be defined as the most characteristic integration of an individual’s structures, modes of behaviour, interests, attitudes, capacities, abilities and aptitudes.”
आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व, व्यक्ति के भीतर के उन मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो उसके वातावरण से अपूर्व अभियोजन को निर्धारित करता है। “
“Personality is the dynamic organization within the individual of those psycho-physical systems that deermine his uinque adjustment to his environment.”
व्यक्तित्व संरचना
(Structure of Personality)

फ्रायड (1927) के अनुसार, व्यक्तित्व तीन तत्त्वों से निर्मित है— इदं (Id); अहं (Ego) तथा आदर्श अहं (Super- Ego ) । इदं का सम्बन्ध अचेतन मन से है। इसकी प्रकृति पशु प्रवृत्यात्मक है और यह सुखवादी सिद्धान्त (Pleasure Principle) से प्रभावित होने के कारण अचेतन स्तर की समस्त दमित, असामाजिक तथा अनैतिक इच्छाओं, प्रेरणाओं आदि की येन-केन प्रकारेण तत्काल सन्तुष्टि चाहता है। फ्रायड इसका क्षेत्र बहुत व्यापक मानता है और इसे ‘Sotre house of unleamed motives and reactions’ मानता है। नाइस (R. W. Nice) के शब्दों में, “The Id is the differented, primitive protion of the mind which contains innate urges, instincts, desires and wishes unfettered by civilized demands and controls. In simple words, the Id is the ‘beast’ in us, the savage, uninhibited urges.” हॉल तथा लिंडजे (Hall and Lindzey) ने इसे अपरिवर्तनशील माना “है— “The contents of the Id are immortal, for, they do not alter with the passage of time. Nothing in the Id is past or forgotten.” अहं, इदं का परिष्कृत और विकसित रूप है। यह तार्किक, व्यवस्थित और विवेकपूर्ण होता है और परिष्कृत प्रतिक्रियाओं द्वारा यथार्थ का ध्यान रखते हुए इदं की इच्छाओं की पूर्ति कराता है। यह यथार्थ के सिद्धान्त (Reality principle) के अनुसार व्यवहार करता है। नाइस के अनुसार — “The Ego is that portion of the psyche which is in contact with the outside world on the one hand and the Id on the other. It attempts to keep thoughts, judgements, interpretations and behaviour, practical and effieicnt in accordance with realistic living.” आदर्श अहं, अहं का विकसित रूप है और व्यक्तित्व का अन्त में विकसित होने वाला नैतिक पक्ष है। इसके विकास में बाल्यावस्था की तादात्मयीकरण तथा अन्तः क्षेपण आदि क्रियाएँ सहायता करती हैं। इसका यथार्थ जगत से कोई सम्बन्ध नहीं होता। नाइस के अनुसार—”The Super-Ego is that part of the psyche which has been termed the conscience. Its primary function is to make us behave like civilized human beings. Thus, it tries to hold the unreasonable out-bursts of the Id in check.” यह निरपेक्ष (Categorical) नैतिकता के आधार पर व्यवहार करना चाहता है और व्यक्ति को बाल्यावस्था में प्राप्त आदर्शों की प्राप्ति के लिये उन्मुख करता है। व्यक्ति में इसका निर्माण उसके स्वयं के जीवन के अनुभव ही नहीं करते अपितु परम्परायें भी इसके निर्माण और विकास में सहयोग देती हैं। यह केवल मानव में पाया जाता है। फ्रायड के शब्दों में “Super-Ego consists of restraints, acquired in the course of personality development on the activity of the Ego and the Id.” इसे Ego Ideal कह सकते हैं। प्रारम्भ में बालक अत्यन्त स्वार्थी और पशुवत् व्यवहार करता है। वह शुद्ध इदं का प्रतिरूप होता है। अतः अपनी समस्त इच्छाओं को बिना यथार्थ पर ध्यान दिये तत्काल सन्तुष्ट करना चाहता है। अहं, बाह्य वातावरण से सम्बन्धित होता है। अतः उससे उत्पन्न खतरों का ध्यान रखते हुए इदं की इच्छाओं को यथार्थ जगत के अनुरूप अभिव्यक्त करने और सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करता है। आदर्श अहं और इदं एक-दूसरे के नितान्त विरोधी हैं। यह प्रतिबन्धों से निर्मित है और इदं युक्त और स्वच्छन्द है। अहं इनकी विरोधी इच्छाओं में सामंजस्य कराने का प्रयास करता है, क्योंकि सभ्य समाज में रहने के लिये उसकी मान्यताओं का पालन करना अनिवार्य है और खोखले आदर्शों को लेकर भी जीवित रहना कठिन है। फ्रायड के शब्दों “The Ego thies to mediate between the world and Id to make the Id comply with the world’s demands and by means of muscular activity to accomodate the world to the Id’s desires.” ब्राउन (Brown) के अनुसार- “The Ego direct behaviour towards a maximum satisfaction of the individual’s urges consistent with its knowledge of social and physical reality. It is, thus, tadjuster between the wishes of the Id and demands of reality.”

इसी कारण इसे ‘मन का मुख्य शासक’ कहा गया है। ब्राउन ने इन तीनों का परस्पर सम्बन्ध दर्शाते हुए कहा है—”The Id is primarily biologically conditioned, the Ego is primarily conditioned by the physical environment, but the Super-Ego sociologically or cuoned.” ये तीनों परस्पर सम्बन्धित पक्ष हैं। यदि अहं शक्तिशाली है तो वह इदं के आवेगों को रोकता है और आदर्श अहं के नैतिक लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास करता है। वास्तव में ये तीन भाग व्यक्तित्व की तीन दशायें हैं जो उसके विकास की अवस्थाओं से सम्बन्धित हैं। आदर्श अहं का विकास सभ्यता से सम्बन्धित है और इदं आदिम समाज और व्यक्तित्व से सम्बन्धित है। उदाहरणार्थ, कहीं जा रहे हैं, रास्ते में आम का बाग पड़ता है जिसमें बढ़िया पके हुए आम लगे हुए हैं, हमारी इच्छा होती है कि तोड़कर भर पेट आम खायें जायें पर रखवाले का भय हमें विवश करता है कि हम उसके हटने की प्रतीक्षा करें, दूसरी ओर यह विचार आता है कि यह तो चोरी है, ऐसा करना अनुचित है। इसमें पहली इच्छा इदं, दूसरी अहं व तीसरी आदर्श अहं की है।

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