‘शब्द’ की परिभाषा देते हुए भाषा में शब्द के महत्त्व को समझाइए तथा शब्द विभिन्न भेदों की व्याख्या कीजिए ।

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प्रश्न – ‘शब्द’ की परिभाषा देते हुए भाषा में शब्द के महत्त्व को समझाइए तथा शब्द विभिन्न भेदों की व्याख्या कीजिए । 

उत्तर – हिन्दी में “शब्द” की व्याख्या कई प्रकार से की जाती है । श्रोतव्य रूप के आधार पर यह व्याख्या इस प्रकार होगी-

“अक्षरों अथवा वर्णों के समुदाय विशेष को ‘शब्द’ कहते हैं । ” शब्द और उसके अर्थ का ध्यान रखते हुए ‘शब्द’ की व्याख्या इस प्रकार से करनी चाहिए—

“व्यक्ति के विचारों के प्रतीक रूप में उच्चरित की जाने वाली ध्वनियों के समूह या संकेतों को ‘शब्द’ कहते हैं।

साधारण रूप से विचार किया जाय तो कहा जा सकता है कि –

“कानों से सुना जाने वाला प्रत्येक नाम ‘शब्द’ है ।”

भाषावैज्ञानिक ‘शब्द’ को स्वतन्त्र चरम वाक्य मानते हैं। व्याकरण की दृष्टि से ” स्वतन्त्र तथा सार्थक ध्वनि” ही ‘शब्द’ है ।

संस्कृत में ‘शब्द’ के लिए पद या पाद का प्रयोग भी होता है ।

‘शब्द’ का महत्त्व

भाषा की दृष्टि से ‘शब्द’ का बड़ा महत्त्व है । आदिम युग से लेकर अर्वाचीन युग तक व्यक्ति जो कुछ ज्ञान ग्रहण कर पाया है, वह शब्दों के रूप में ही आज विश्व के सामने संचित तथा सुरक्षित है। भावों की अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन ‘शब्द’ ही है। वक्ता या लेखक अपने शब्दकोश के बल पर ही मैदान मार लेता है । ‘शब्द’ भाषा के क्रमिक विकास की रूपरेखा है, लेखक की शक्ति है तथा व्याकरण और भाषा-विज्ञान का प्राण है। किसी भाषा का ज्ञान तब तक अधूरा है, जब तक उस भाषा में प्रयुक्त शब्दों का पूरा-पूरा ज्ञान न हो। किसी समाज अथवा राष्ट्र के इतिहास की जानकारी प्राप्त करनी हो तो उसकी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना होगा। यदि किसी भाषा की गम्भीरता और हल्केपन का पता लगाना हो तो उसकी शब्दावली पर दृष्टि डालनी होगी। इन सभी बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘शब्द’ भाषा की निधि है।

शब्दों के भेद

ध्वनि सम्बन्धी भेद

ध्वनि की दृष्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं –

(i) ध्वन्यात्मक शब्द,
(ii) वर्णात्मक शब्द ।

जो शब्द स्पष्टतापूर्वक सुनाई नहीं देते और न स्पष्ट रूप से समझ में ही आते हैं, ऐसे शब्दों को ‘ध्वन्यात्मक’ शब्द कहते हैं। जो शब्द पृथक्-पृथक अक्षरों से पृथक्-पृथक् रूप से सुनाई देते हैं, उन्हें ‘वर्णात्मक’ शब्द कहते हैं। मानव जीवन की दृष्टि से ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का महत्त्व अधिक है ।

अर्थ सम्बन्धी भेद –

अर्थ की दृष्टि से शब्दों के दो भेद किए जा सकते हैं—
(i) सार्थक शब्द,
(ii) निरर्थक शब्द |

साहित्यिक भाषा का सम्बन्ध केवल सार्थक शब्दों से ही रहता है, निरर्थक से नहीं। सार्थक शब्दों में भाव और विचार की एक प्रतिमा निहित रहती है। उन शब्दों के उच्चारण मात्र से प्रतिमा के संस्कार उद्बुद्ध हो उठते हैं ।

शब्द – शक्तियाँ

शब्दों की तीन शक्तियाँ निर्धारित की गई हैं—

(i) अभिधा, (ii) लक्षणा, तथा (iii) व्यंजना ।

जिस व्यक्ति के द्वारा शब्द के वाच्यार्थ का बोध होता है, उसे ‘अभिधा’ कहते हैं वाचक शब्द तीन प्रकार के होते हैं-

(क) रूढ़, (ख) यौगिक, (ग) योग रूढ़ ।

जिन शब्दों का पूर्ण बोध उनके अवयवार्थ से होता है; जैसे–’राकेश’ यौगिक शब्द है। इसके दो अवयव ‘राका’ और ‘ईश’ है । इसका अर्थ हुआ–राका (रात्रि) का स्वामी; अर्थात्-चन्द्रमा ।

योग रूढ़ शब्दों में हमें यौगिक रूढ़ – दोनों ही शब्दों की शक्तियों का सम्मिश्रण प्राप्त होता है; यथा— “लम्बोदर’ शब्द का यौगिक अर्थ हुआ— लम्बे उदर वाला । परन्तु यह शब्द गणेश जी के लिए रूढ़ हो चुका है । ‘लम्बोदर’ शब्द सुनते ही हमारे मन में गणेश जी का चित्र आ जाता है । ‘पंकज’ तथा ‘जलज’ शबद भी योग – स -रूढ़ है ।

जिस शक्ति के द्वारा लक्ष्यार्थ का बोध होता है, उसे ‘लक्षणा’ कहते हैं; यथा—“मैं जयशंकर प्रसाद का अध्ययन कर रहा हूँ ।” इस वाक्य में ‘जयशंकर’ से तात्पर्य – उनका साहित्य है, जिनका अध्ययन किया जा रहा है। यहाँ ‘जयशंकर प्रसाद का साहित्य’, यह लक्ष्यार्थ है ।

जिस शक्ति के द्वारा शब्द के व्यंग्यार्थ का बोध होता है, उसे व्यंजना कहते हैं जैसे यदि कोई कहे कि “कल तुम्हारी कोठी में रात भर कुत्ता भौंकता रहा ” तो इसका व्यंग्यार्थ निकलता है कि शायद चोर आए हों, इसलिए सावधानी की आवश्यकता है।

रूपान्तर के आधार पर शब्द – भेद

रूपान्तर के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं –

(i) विकारी, (ii) अविकारी ।

जो शब्द लिंग, कारक तथा वचन आदि के प्रभाव से अपना रूप परिवर्तित कर लेते हैं, उन्हें ‘विकारी’ शब्द कहते हैं। विकारी शब्द चार प्रकार के होते हैं— संज्ञा-सर्वनाम-विशेषण और क्रिया ।

जिन शब्दों पर लिंग, वचन तथा कारक आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उन्हें ‘अविकारी’ शब्द कहते हैं। अविकारी शब्द भी चार प्रकार के होते हैं—क्रिया-विशेषण, सम्बन्ध, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक ।

शब्द-ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ?

शब्दों का ज्ञान हमें तीन प्रकार से प्राप्त होता है

(i) उच्चारण करने से, (ii) सुनने से, (iii) देखने से ।

यद्यपि अपनी-अपनी जगह पर उच्चारण-ज्ञान, श्रवण – ज्ञान तथा चक्षु-ज्ञान-इन तीनों का महत्त्व है; परन्तु फिर भी चिन्तन का निखरा रूप उच्चारण-ज्ञान में ही माना जाता है।

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