शिक्षा का आर्थिक विकास में योगदान का वर्णन करें ।

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प्रश्न – शिक्षा का आर्थिक विकास में योगदान का वर्णन करें । 
(Describe the contribution to education in economic development.)
उत्तर – शिक्षा का धनोपार्जन पर अन्य प्रकार से भी प्रभाव पड़ता है। जैसे—
  1. शिक्षित व्यक्तियों में अधिक सूझ-बूझ-शिक्षित व्यक्ति में पूँजी को एकत्र करने, श्रम को उपयुक्त कार्यों में लगाने, जोखिम उठाने, उत्पादन की दिशा निर्धारित करने, बाजार की माँग का अध्ययन करके उपभोग्य वस्तुओं का उत्पादन करने आदि की क्षमता अशिक्षित की अपेक्षा अधिक होती है। शिक्षित व्यक्ति राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों तथा बैंक एवं साख-प्रणाली का ज्ञान रखता है जिससे व्यवसाय को बढ़ाने में वह सफल होता है ।
  2. मशीनों का आविष्कार तथा प्रयोग — शिक्षित व्यक्ति मशीनों के आविष्कार, उनकी मरम्मत और रख-रखाव आदि में भी अधिक सफल होता है। नए-नए आविष्कार शिक्षितों द्वारा हुए हैं ।
  3. नेता के गुण – शिक्षित व्यक्ति ही उद्योगों एवं वाणिज्य में अगुआ या नेता बनकर दूसरों को मार्ग-दर्शन करते हैं ।
  4. शिक्षा तथा जीवन निर्वाह तथा आदर्श – प्रोफेसर शूल्ज के अनुसार राष्ट्रीय आय का एक बहुत बड़ा अंश शिक्षा के कारण प्राप्त होता है। शिक्षा केवल जीवन निर्वाह के लिए सक्षम नहीं बनाती वरन् वह व्यक्ति एवं समाज को आदर्शों की रक्षा और वृद्धि में भी सहायता करती है ।
  5. उत्पादन क्षमता में सामान्य शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा का योगदानअर्थशास्त्री केवल प्राविधिक (तकनीकी) शिक्षा को ही उत्पादक मानते हैं । सामान्य शिक्षा को वे उपभोग की श्रेणी में रखते हैं। परन्तु उन्हें यह न भूलना चाहिए कि सामान्य शिक्षा प्राविधिक शिक्षा का मूलाधार है । अतः वह भी उत्पादन में सहायक होती है । बड़े-बड़े उद्योग-धंधों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में केवल प्राविधिक (तकनीकी) ज्ञान वाले ही नहीं आवश्यक होते हैं वरन् लिपिक (क्लर्क), टंकण (टाइपिस्ट), लेखाकार (एकाउंटेंट) इत्यादि का स्थान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता ।
  6. अनुभव तथा कुशलता में विकास – शिक्षा एक प्रकार का दीर्घकालीन विनियोजन है। इसका प्रतिफल दस से बीस वर्षों के बाद प्राप्त होने लगता है परन्तु अन्य प्रकार की पूँजी के अनुसार इसमें घिसावट नहीं होती और न तो शिक्षित व्यक्ति पुराना होने पर अकुशल एवं अनद्यतन (पुराना) हो जाता है । इसका विपरीत अनुभव से उसकी कुशलता और भी बढ़ जाती है।
  7. अर्जन क्षमता में वृद्धि – शिक्षा में विनियोजन से अल्पकालीन लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है । जो व्यक्ति किसी कार्य या व्यवसाय में है उसे प्रशिक्षित करके, अथवा नवीनीकरण की अल्पकालीन शिक्षा देकर उसकी उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है। साधारण नौकरी में प्रवेश करके शिक्षा द्वारा उन्नति करते हुए उच्च पदों पर (यहाँ तक कि आई. ए. एस. के पद पर) पहुँचने के अनेक उदाहरण देखे जाते हैं। बैंक ऑफ इण्लैण्ड का एक क्लर्क उसका गवर्नर होकर रिटायर हुआ । भारतीय वायु सेवा का एक मैट्रिक पास ऑपरेटर अपनी शैक्षिक योग्यता बढ़ाकर आई.ए.एस. में पहुँच गया । इस प्रकार शिक्षा के द्वारा मनुष्य की अर्जन-क्षमता बढ़ती हुई पाई जाती है ।
  8. शिक्षा का सामाजिक वातावरण पर प्रभाव – शिक्षा का प्रभाव सामाजिक-आर्थिक वातावरण पर भी पड़ता है। शिक्षित व्यक्तियों का प्रभाव उनके वातावरण पर पड़ता है । उनके ऊँचे रहन-सहन के कारण दूसरे लोग भी अपना रहन-सहन ऊँचा करने के लिए शिक्षा की ओर अग्रसर होते हैं, फलतः समाज में शिक्षा द्वारा अपना रहन-सहन ऊँचा करने की होड़ लग जाती है । अंग्रेजी राज में अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों को ऊँचे पदों पर नियुक्त होते और उनके आय तथा रहन-सहन में वृद्धि देखकर अनेक माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने को प्रवृत्त हुए । इस प्रकार शिक्षा द्वारा अपनी आय बढ़ाने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण ही समाज में शिक्षा का प्रचार हुआ और उससे लोगों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति हुई ।
  9. शैक्षिक नियोजन तथा आर्थिक नियोजन — स्वतन्त्र भारत के राजनीतिक नेताओं तथा प्रशासकों ने यह अनुभव किया कि शिक्षा के क्षेत्र में नियोजन (प्लैनिंग) करने से आर्थिक नियोजन में सहायता मिलती है । शैक्षिक नियोजन एवं आर्थिक नियोजन का घनिष्ठ सम्बन्ध है । अनियोजित शिक्षा के कारण अंग्रेजी राज के अन्तिम दिनों में शिक्षितों में बेकारी की समस्या बहुत बढ़ गई थी । स्वतन्त्र भारत में भी जब तक शैक्षिक-नियोजन आर्थिक नियोजन से असम्बद्ध था तब तक बेकारी बढ़ती जा रही थी। परन्तु जबसे शिक्षा में नियोजन के फलस्वरूप शिक्षा का व्यवसायीकरण तथा विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने लगा है तबसे शिक्षितों की बेकारी घटने लगी है। यदि समाज में प्रत्येक व्यक्ति की रुचि, क्षमता एवं योग्यता के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जाए और उसके मानसिक, शारीरिक एवं नैतिक विकास का पूरा अवसर प्रदान किया जाए तो समाज की सभी प्रकार की आवश्यकताओं के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित व्यक्ति उपलब्ध होंगे और सभी के लिए काम मिल जाएगा । इस प्रकार शिक्षा नियोजित होने पर देश की राष्ट्रीय आय बढ़ाने में सहायक होगी और बेकारी की समस्या दूर होगी ।
  10. शिक्षा का प्रसार तथा रोजगार – शिक्षा विभाग स्वयं भी बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित व्यक्तियों की माँग करता है। पूर्व-प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा 1 था प्रशासकों, अध्यापकों, लिपिकों, टंकणों, पुस्तकालयाध्यक्षों तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की बहुत बड़ी संख्या शिक्षा विभाग में नियुक्त होती है । इस प्रकार शिक्षा विभाग बहुत बड़ी संख्या में अपने ही शिक्षित व्यक्तियों को नियुक्त करके उनकी आय बढ़ाने में सहायक होता है । आँकड़ों से यह सिद्ध होता है कि शिक्षा विभाग में जितने शिक्षित व्यक्तियों को काम मिला है उतने किसी अन्य धन्धे में नहीं मिला। इस प्रकार शिक्षा भी शिक्षितों की बेकारी का एक प्रमुख कारण है शिक्षा प्रसार में कमी । यहाँ पर अभी अनेक विद्यालयों की स्थापना होनी चाहिए । पूर्व प्रारम्भिक कक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक शिक्षा संस्थाओं में छात्रों के प्रवेश की समस्या बहुत जटिल होती है । अध्यापकों की कमी नहीं है, · छात्रों की कमी नहीं है । भवनों का अभाव भी उतना बाधक नहीं है जितना समझा जा रहा है | कमी है केवल नियोजन की । यदि वर्तमान शिक्षा संस्थाओं में दो या तीन पालियों में शिक्षा देने की व्यवस्था कर दी जाए तो अनेक अध्यापकों, निरीक्षकों, लिपिकों इत्यादि की आवश्यकता पड़ेगी और बहुत से शिक्षित बेकारों को कम मिल जाएगा। दूसरी ओर देश के शिक्षितों का प्रतिशत बढ़ते-बढ़ते शत-प्रतिशत का लक्ष्य पूर्ण किया जा सकेगा । अभी हमारे गाँवों में शिक्षा का बहुत अभाव है। ग्रामीण विद्यालयों की संख्या बढ़ने पर गाँवों में न केवल बच्चों में साक्षरता बढ़ेगी वरन् प्रौढ़ – शिक्षा के विकास में प्रौढ़ों से भी साक्षरता बढ़ेगी ।
  11. सभ्यता का विकास – नए प्रकार के उद्योग-धन्धे- किसी देश के सर्वतोन्मुख विकास के लिए शिक्षा ही मूल आधार है। शिक्षा की ही नींव पर समाज का भव्य भवन निर्मित होता है। संसार का इतिहास बतलाता है कि मनुष्य जब तक अनपढ़ था तब तक सभ्यता का विकास बहुत मंद गति से हुआ और दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुओं के लिए उसे बहुत दिनों तक प्रकृति के सहारे पर ही रहना पड़ा। लेकिन जबसे उसने पढ़ना-लिखना सीखा तबसे उसकी सोचने की गति और दिशा ही नहीं बदली, वरन् वह अपनी दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं का उत्पादन अथवा निर्माण भी करने लगा। फलतः सभ्यता-विकास की गति बहुत तीव्र हो गई । हस्तशिल्प के अतिरिक्त चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला आदि का भी उसका ज्ञान बढ़ा और वह कला के नए-नए नमूने उत्पन्न करने लगा । कृषि एवं पशु-पालन के व्यवसायों में उन्नति हुई, वाणिज्य व्यवसाय भी चलने लगा । वाणिज्य के लिए वह दूर-दूर की यात्राएँ करने लगा। इसके लिए पहले तो वह पशुओं की पाठ पर ही माल ले जाता था, परन्तु धीरे-धीरे पहिए वाली गाड़ियों का आविष्कार हुआ । फिर जल यातायात के लिए नावों और जहाजों का निर्माण किया । इस प्रकार शिक्षा – प्रसार के फलस्वरूप मानव सभ्यता बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ने लगी ।

आज प्रायः सभी देशों में शिक्षा को महत्त्वपूर्ण स्थान इसीलिए दिया जाता है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक सभी प्रकार की उन्नति के लिए देशवासियों को शिक्षित करना आवश्यक है। देश का शासन शिक्षित व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता है । कृषि, पशु पालन, उद्योग-धंधे, वाणिज्य व्यवसाय, मुद्रा महाजनी (बैंकिंग), यातायात (जल, थल, नभ), संचार व्यवस्था (तार, टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन इत्यादि), प्रतिरक्षा, राजनयिक सम्बन्ध इत्यादि सभी क्षेत्रों में शिक्षित व्यक्तियों की ही अधिक आवश्यकता पड़ती है। संसार में जितने आविष्कार हुए हैं वे सब शिक्षा के ही परिणाम हैं । अतः शिक्षा के बिना वर्तमान समाज की प्रगति बिल्कुल ही नहीं हो सकती ।

निष्कर्ष – उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि शिक्षा के द्वारा ही किसी देश का औद्योगिक एवं आर्थिक विकास होता है। शिक्षा की प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति होती चलती है । कृषि-प्रधान देश में कृषि विकास के लिए अच्छे औजार, उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, सिंचाई के साधन तथा इन सबके लिए मशीनों का उपयोग आवश्यक होता है । ये कार्य भी शिक्षित व्यक्ति कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं। इसलिए कृषि को उन्नतशील बनाने के लिए शिक्षा भी आवश्यक है ।

इसी प्रकार औद्योगिक देश में भी मशीनों के आविष्कार, उनके प्रयोग एवं सुधार के लिए शिक्षा की अनिवार्य आवश्यकता है । शिक्षित व्यक्ति का मस्तिष्क उत्पादन के नए-नए ढंग सोचा करता है । वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति करने का इच्छुक रहता है। यही कारण है कि देश की आर्थिक समृद्धि के लिए शिक्षा आवश्यक मानी जाती है ।

प्रगतिशील देशों की उन्नति का प्रमुख कारण उनकी शिक्षा व्यवस्था है । प्रायः सभी विकसित देशों में शत-प्रतिशत जनता शिक्षित हैं। इसके विपरीत पिछड़े हुए देशों की गरीबी का मूल कारण उनकी अशिक्षा है। भारत में आज भी लगभग एक-तिहाई जनसंख्या अनपढ़ है ।

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