शिक्षा का राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन में महत्त्व तथा योगदान का वर्णन करें ।

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प्रश्न – शिक्षा का राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन में महत्त्व तथा योगदान का वर्णन करें ।
(Describe the education’s importance role in national integration and emotional Integration.)

उत्तर – शिक्षा का राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन में महत्त्व (Significance of Education in National Integration and Emotional Integration ) — भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने शिक्षा के राष्ट्रीय समाकलन के योगदान के बारे में कहा, “राष्ट्रीय भावात्मक एकता में शिक्षा का स्थान सबसे ऊपर है।”

डॉ. राधाकृष्णन् ने इस विषय पर अपने विचार इस प्रकार प्रकट किए, “यदि भारत को संयुक्त तथा लोकतन्त्रीय राज्य रहना है तो शिक्षा का कार्य एकता के लिए, न कि प्रादेशिकता के लिए, प्रजातन्त्र के लिए न कि तानाशाही के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना होगा।”

1961 में बनी डॉ. सम्पूर्णानन्द भावात्मक समिति ने कहा, “राष्ट्रीय भावात्मक समाकलन को पोषित तथा सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा का प्रमुख स्थान है। शिक्षा द्वारा सहनशीलता तथा त्याग की भावना का विकास होना चाहिए, जिसमें संकी दृष्टिकोण के स्थान पर राष्ट्रीय हितों के लिए प्रबल तथा प्रखर राष्ट्रीय दृष्टिकोण पनपे ।”

राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन के लिए शिक्षा के योगदान पर महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों में दी गई महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ—

A भावात्मक समाकलन समिति की सिफारिशें, 1961 (Recommendations of the Emotional Integration Committee, 1961)

भारत में भावात्मक एकता को बढ़ावा देने के लिए सन् 1961 में स्वर्गीय डॉ. सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में एक भावात्मक एकता समिति का गठन भारत सरकार ने किया था। डॉ. सम्पूर्णानन्द भावात्मक समिति के अध्यक्ष थे। उस समिति ने विचार-विमर्श के उपरान्त कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए । उनमें से कुछ यहाँ उद्धृत किए जा रहे हैं—

  1. पाठ्यक्रम का नवीकरण (Re-orientation of the Curriculum) – इसक अन्तर्गत विभिन्न सोपानों में पाठ्यक्रम में परिवर्तन करने का सुझाव दिया गया है –
    1. प्रारम्भिक कक्षाओं में धार्मिक, ऐतिहासिक, उपदेश प्रद एवं प्रेरणात्मक कहानियों के माध्यम से छात्रों में चरित्र निर्माण एवं देश-प्रेम की नींव डालना । कविताओं, लोकगीतों, राष्ट्रगीतों तथा सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों में भावात्मक एकता के भाव जाग्रत करना ।
    2. माध्यमिक स्तर पर अन्य विषयों के अतिरिक्त एक से अधिक भाषाएँ भारतीय साहित्य, सामाजिक अध्ययन के विषय, नैतिक एवं आचारात्मक शिक्षा तथा पाठ्येत्तर कार्य-कलापों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करके शिक्षा को अधिक व्यापक एवं उपयोगी बनाया जाना ।
    3. विश्वविद्यालय के स्तर पर विभिन्न सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन, भाषाओं एवं साहित्यों का अध्ययन, कलात्मक एवं सांस्कृतिक विषयों का अध्ययन कराने के अतिरिक्त छात्रों का अन्तः प्रादेशिक आदान-प्रदान, राष्ट्रीय तीर्थों की यात्राएँ एवं अध्यापकों का आदान-प्रदान करना।
  2. पाठ्येत्तर कार्य-कलाप (Curricular Activities) — पाठ्यक्रम में पाठ्येत्तर कार्य-कलापों को महत्त्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि अनौपचारिक व निरौपचारिक शिक्षा के द्वारा छात्र अधिक सीख सकते हैं। विद्यालयों में प्रायः राष्ट्रीय पक्षों पर उत्सव मनाए जाते हैं । इन उत्सवों की व्यवस्था छात्रों के हाथ में दे देनी चाहिए। इससे वे अपना उत्तरदायित्व समझेंगे और उत्सव को सफल बनाने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देंगे। इसके अतिरिक्त खेल-कूद, शैक्षिक यात्राएँ, वन-विहार, सैनिक शिक्षा, बालचर क्रिया-कलाप, वाद-विवाद, विचारगोष्ठी, नाटक अभिनय, युवकरु- समारोह इत्यादि के द्वारा छात्रों को परस्पर सहयोग से कार्य करने और एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आने का अवसर मिलता है। इस कार्य में सिनेमा, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, दूरदर्शन आदि का सहारा लेना अधिक लाभकर होगा । इस प्रकार इन क्रियाओं पर जोर दिया जाए ।
  3. सामाजिक अध्ययन के विषयों पर बल (Emphasis on the teaching of Social Studies)— समिति ने प्रारम्भिक स्तर से लेकर माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा तक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन पर बल दिया है। इससे देश की भौगोलिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का परिचय प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों में देश-विदेश के महापुरुषों की जीवनियाँ, प्राचीन धर्म, ग्रन्थों, इतिहास-पुराणों आदि से कहानियाँ आदि संगृहीत होनी चाहिए ।
  4. भाषा एवं लिपि (Language and Script) — यद्यपि समिति ने संक्रमणकाल (Transitional Period) के लिए रोमन लिपि का विकल्प दिया है फिर भी अन्ततः देवनागरी लिपि का एवं हिन्दी राष्ट्रभाषा की ग्रहण करने का सुझाव दिया है । अहिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी को अपनी प्रादेशिक लिपि में सीखने की छूट की संस्तुति की।
  5. राष्ट्रीय झण्डे (National Flag) एवं राष्ट्रीय गान (National Anthem) का आदर ।
  6. राष्ट्रीय पर्व (National Days) स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त) तथा महात्मा गाँधी का जन्मदिन (2 अक्टूबर) एवं गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी) को उत्सव के रूप में मनाना ।
  7. नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना (Promotion of Moral and Human values)–शिक्षा के प्रत्येक स्तर तथा कार्यक्रम में नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के विकास पर बल देना ।
  8. पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण (Preparing of Text Books) — यह आश्वस्त करना कि पाठ्य-पुस्तकों में किसी धर्म, विश्वास, जाति, लिंग, व्यक्ति आदि के बारे में कोई भी बात ऐसी न हो, जिससे घृणा के भाव जाग्रत हों, बल्कि समरसता का अभास हो ।
  9. दैनिक प्रातः सभा (Daily Morning Assembly) — दैनिक सभा में नैतिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महान पुरुषों के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बताई जाएँ ।
  10. छात्र आदान-प्रदान कार्यक्रम चलाना ( Student Exchange Programme)।
  11. असाम्प्रदायिक विचारों वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन देना (Encouragement to Secular Institutions) |
  12. अध्यापक आदान-प्रदान ( Teacher Exchange Programme)।
  13. शिक्षा में प्रभावशाली राष्ट्रीय नीति (Formulation of Effective National Policy)–केन्द्र को एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विकास करना चाहिए जो सम्पूर्ण देश के लिए हितकर हो और समान रूप से सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में लागू की जा सके । केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय को एक ऐसी समिति स्थापित करनी चाहिए जो प्रादेशिक सरकारों के सहयोग से राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रगति का निरीक्षण करती रहे तथा उसमें सुधार के लिए उचित परामर्श दे ।
  14. राष्ट्र-भक्ति की शपथ लेना (National Fledge)–वर्ष में दो बार (15 अगस्त तथा 26 जनवरी को) छात्रों को इस प्रकार की शपथ लेनी चाहिए –
    भारतवर्ष हमारा देश है और इसके सभी निवासी हमारे भाई-बहन है |
    मैं अपने देश से प्रेम करता हूँ और मुझे इसकी गौरवपूर्ण परम्परा का गर्व है । मैं अपने को उन आदर्शों पर ढालने का प्रयास करूँगा ।
    मैं अपने गुरूओं (अध्यापकों, माता-पिता) तथा बड़ों का आदर करूँगा और सभी प्राणियों के साथ सहानुभूति रखूँगा ।
    मैं अपने देश एवं देशवासियों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करता हूँ

(B) शिक्षा आयोग, 1964-66 की सिफारिशें (Recommendation of the Education Commission, 1664-66)

शिक्षा आयोग, 1965-66 तथा राष्ट्रीय समाकलन अथवा भावात्मक एकता का निर्माण चुनौतीपूर्ण कार्य – शिक्षा आयोग, 1964-66 ने इस सन्दर्भ में अपने विचार इस प्रकार प्रकट किए, “भारतीय समाज में अनेक सोपान हैं। इसके अनेक स्तर बन गए हैं। विभिन्न वर्गों के बीच का अन्तर, विशेषकर गरीब और अमीर वर्ग में तथा शिक्षितों और अशिक्षितों में काफी गहरा होता जा रहा है। चूँकि शिक्षा की जड़ें लोगों की सांस्कृतिक परम्पराओं में नहीं है इसलिए लोग भारत को भूलते जा रहे जान पड़ते हैं।” इस प्रकार विवेचन के पश्चात् शिक्षा आयोग ने राष्ट्रीय भावात्मक एकता के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों का सुझाव दिया –

  1. लोक शिक्षा की एक समान शिक्षा प्रणाली को देश में चालू करना ।
  2. सभी स्तरों पर सामाजिक तथा राष्ट्रीय सेवा को शिक्षा का एक अभिन्न अंग बनाना ।
  3. सभी भारतीय भाषाओं का विकास करना ।
  4. राष्ट्रीय भाषा का काम प्रभावशाली ढंग से करना।
  5. राष्ट्रीय चेतना को प्रोत्साहन देना ।
  6. पाठ्यक्रम में प्रत्येक स्तर पर नागरिकता के मूल सिद्धान्तों पर बल देना ।

(C) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 तथा राष्ट्रीय भावात्मक एकता (National Policy of Education, 1986 and National Emotional Integration ) — शिक्षा नीति ने शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास के लिए देशों में राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था पर बल दिया है । इसके अन्तर्गत पूरे देश में एक समान राष्ट्रीय ढाँचा, समान राष्ट्रीय पाठ्यक्रम, जिसमें समान कोर पाठ्यक्रम हो, की व्यवस्था है। कोर पाठ्यक्रम में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, संवैधानिक जिम्मेदारियाँ तथा राष्ट्रीय पहचान से सम्बन्धित अनिवार्य तत्त्वों का प्रावधान है। ये तत्त्व किसी भी विषय का हिस्सा हो सकते हैं जो हमारे विविध सांस्कृतिक पहलुओं, लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरुषों के बीच समानता, पर्यावरण के महत्त्व, सामाजिक एकता की बाधाओं को दूर करने, सीमित परिवार के महत्त्व को समझने और वैज्ञानिक अभिरुचि का विकास करने की जरूरत को सिखा सकें। सभी शैक्षिक कार्यक्रमों को धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के अनुरूप ही आयोजित किया जाए।

इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निम्नलिखित बातों पर बल दिया गया –

(1) कोर पाठ्यक्रम (Core Curriculum),
(2) समरूप शैक्षिक संरचना (Uniform Educational Structure),
(3) अवसरों की समानता (Equality of Opportunity),
(4) राज्यों में विकास की विषमताएँ दूर करना (Removing Disparities in State),
(5) सामाजिक तथा राष्ट्रीय सेवा (Social and National Integration),
(6) दाखिला भेदभाव के बिना (Admission without Discrimination),
(7) गाँव के लिए विशेष स्कूलों की व्यवस्था (Special Schools for Rural Areas)।

(D) राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्बन्धी कार्य योजना, 1992 तथा राष्ट्रीय एवं भावात्मक समाकलन (Programme of Action, 1992 on National and Emotional Integration)— राष्ट्रीय नीति के संशोधन के परिणामस्वरूप, सरकार ने 1992 में एक संशोधित कार्यवाही योजना भी तैयार की। कार्यवाही योजना में अन्य बातों के साथ-साथ इस बात पर भी बल दिया गया कि राष्ट्रीय तथा भावात्मक समाकलन के लिए आवश्यक है कि पिछड़े राज्यों, क्षेत्रों तथा वर्गों की शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएँ । महिलाओं की शिक्षा के लिए तथा उन्हें सशक्त करने के लिए अनेक योजनाओं के सुझाव दिए । इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं को प्रभावी बनाने के उपायों का उल्लेख किया गया ।

संशोधित कार्य योजना में कहा गया कि राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को निर्धनता उन्मूलन, राष्ट्रीय एकता जैसे लक्ष्यों के अनुरूप ढाला जाएगा। यह स्वीकार किया गया कि राष्ट्रीय तथा भावात्मक एकता के सन्दर्भ में पाठ्यपुस्तकों में उचित संशोधन किया जाएगा । पाठ्यपुस्तकें साम्प्रदायिक प्रभावों से मुक्त हों । मूल्य शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा तथा इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए ।

उपसंहार — राष्ट्रीय एवं भावात्मक समाकलन को बढ़ावा देने में शिक्षा के योगदान के बारे में हमें डॉ. राधाकृष्णन् के विचारों को सदा ध्यान में रखना चाहिए, “राष्ट्रीय एकता ईंटों और पलस्तर से नहीं स्थापित की जा सकती है, न ही छैनी और हथोड़े से इसका निर्माण किया जा सकता है । इसे चुपचाप लोगों के मनों तथा दिलों में विकसित होना होगा । इसकी एकमात्र प्रक्रिया है—शिक्षा प्रक्रिया ।”

इसी सन्दर्भ में यह लिखना भी न्यायसंगत प्रतीत होता है कि शिक्षा की भी सीमाएँ हैं राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन का सम्बन्ध केवल शिक्षा प्रणाली से ही नहीं । है । इसका सम्बन्ध आर्थिक अथवा सामाजिक क्षेत्रों से भी है । जब तक अमीरी-गरीबी के अन्तर की खाई को कम नहीं किया जाएगा, हम इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समानता के मूल्य को बढ़ावा देना होगा तथा क्षेत्रीय विषमताओं को कम करना होगा | निजी स्वार्थ की बढ़ती हुई भावना को लगाम देना होगा । राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानना होगा ।

राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन सम्बन्धी – राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन सम्बन्धी संस्तुतियों का सार नीचे दिया जा रहा है—

  1. पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन के सन्दर्भ में पर्याप्त पाठ्य-सामग्री को सम्मिलित करना ।
  2. पाठ्य-पुस्तकों को इस प्रकार तैयार करना कि सभी धर्मों, मतों तथा विश्वासों आदि के प्रति उचित भावनाओं का विकास हो ।
  3. अध्यापक अपने आचार- ‘व्यवहार में राष्ट्रीय तथा भावात्मक समाकलन के मूल्यों को दर्शाए ।
  4. शैक्षिक संस्थाओं को मान्यता देते समय यह शर्त लगाई जाए कि पंथनिरपेक्ष सिद्धान्तों का पालन किया जाएगा ।
  5. प्रवेश का आधार योग्यता हो न कि धर्म आदि तत्त्व |
  6. विद्यालय में राष्ट्रीय एकता पर विद्वानों के भाषणों का आयोजन करना ।
  7. राष्ट्रीय एकता पर प्रदर्शनियाँ लगाना ।
  8. राष्ट्रीय एकता के लिए अन्तर्राज्यीय खेलों का आयोजन करना ।
  9. राष्ट्रीय एकता पर कार्यशाला, सेमिनार, कविता पाठ, नाटक, संगीत आदि कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
  10. राष्ट्रीय एकता के लिए विभिन्न गतिविधियों पर शिविर लगाना; जैसे- एन. सी. सी. स्काउटिंग, गर्ल गाइडिंग |
  11. राष्ट्रीय दिवस मनाना; जैसे- 26 जरवरी, 15 अगस्त, शहीद दिवस, साक्षरता दिवस, बाल दिवस आदि ।
  12. महापुरुषों के जन्मदिनों का आयोजन करना ।
  13. भारत के सभी वर्गों के महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाना, जैसे— दीपावली, होली, ईद, गुरुपर्व, क्रिसमस दिवस ।
  14. युवा समारोहों का आयोजन करना ।
  15. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करना ।
  16. गाँवों को स्कूलों द्वारा अपनाकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम; जैसे—वृक्षारोपण, सफाई, प्रौढ़ शिक्षा आदि का आयोजित करना ।
  17. रक्तदान का आयोजन बिना किसी भेदभाव के करना ।
  18. सामूहिक राष्ट्रीयगान तथा अन्य राष्ट्र सम्बन्धी गीत गाना |
  19. प्रार्थना सभा का आयोजन करना तथा समाकलन पर समय-समय पर प्रकाश डालना ।
  20. राष्ट्रीय झण्डे को सम्मानपूर्वक फहराना ।
  21. सर्वमान्य अभिवादन की विधि अपनाना ।
  22. सामुदायिक जीवन का आयोजन करना ।
  23. राष्ट्रीय एकता सम्बन्धी परियोजना अपनाना ।
  24. बुलेटिन बोर्ड पर सभी धर्मों की अच्छी बातें लिखना ।
  25. समाकलन तथा एकता क्लब स्थापित करना ।
  26. अन्तर्राज्य शैक्षिक भ्रमणों का आयोजन करना ।
  27. विभिन्न राज्यों के स्कूलों से आदान-प्रदान करना ।
  28. अध्यापकों का आदान-प्रदान ।
  29. राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना ।
  30. राष्ट्रीय एकता सम्बन्धी फिल्मों को प्रदर्शित करना ।
  31. युवा संसद (Youth Parliament) का आयोजन करना |

राष्ट्रीय समाकलन एकता तथा भावात्मक समाकलन के विकास हेतु किए जा रहे कार्यक्रम –

  1. देश में समान शैक्षिक संरचना 10+2+3 (Common Structue of Education) लागू करना ।
  2. समान कोर पाठ्यक्रम (Common Core Curriculum) लागू करना ।
  3. शैक्षिक अवसरों की समानता प्रदान करने के लिए प्रयास करना ।
  4. पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर विशेष बल देना ।
  5. पाठ्य पुस्तकों का मूल्यांकन कराना ताकि विभिन्न समुदायों को जोड़ने वाली सामग्री को सम्मिलित किया जाए तथा इस सन्दर्भ में अनुचित सामग्री को हटाया जाए ।
  6. नवोदय विद्यालयों की देश के विभिन्न भागों में स्थापना करना।
  7. केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना करना ।
  8. राष्ट्रीय भाषा तथा प्रादेशिक भाषाओं का विकास करना ।
  9. विभिन्न राज्यों में एक-एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रयास करना ।
  10. शिविरों का आयोजन करना ।
  11. समुदाय की सेवा के लिए परियोजनाएँ चलाना ।
  12. प्रत्येक जिले में एक केन्द्रीय कॉलेज स्थापित करने की योजना बनाना ।
  13. भावात्मक समाकलन समितियों की स्थापना करना ।
  14. सामूहिक राष्ट्र प्रेम के गानों को प्रोत्साहन देना ।
  15. राष्ट्रीय समाकलन अन्तर्राज्य छात्र – अध्यापक आदान-प्रदान शिविर लगाना ।

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