शिक्षा के व्यवसायीकरण से आप क्या समझते हैं ?

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प्रश्न – शिक्षा के व्यवसायीकरण से आप क्या समझते हैं ? 
(What do you understand by Vocationalization of education.) 

उत्तर – शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ है व्यावसायिक विषयों के अध्ययन की व्यवस्था करना जिनका अध्ययन करके तथा सम्बन्धित प्रशिक्षण प्राप्त करके छात्र किसी रोजगार के योग्य बन सकें । व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत व्यापार औद्योगिकी, कृषि आदि से सम्बन्धित विषय तथा कार्यक्रम आते हैं। व्यावसायीकरण एक विस्तृत प्रत्यय है, इसमें अनेक छोटे-बड़े व्यवसाय आ जाते हैं ।

शिक्षा आयोग, 1964-66 ने व्यावसायिक शिक्षा का अर्थ इस प्रकार बताया, “हमारी यह कल्पना है कि भविष्य में स्कूली शिक्षा की प्रवृत्ति सामान्य एवं व्यावसायिक शिक्षा के लाभदायक मिश्रण की ओर होगी । सामान्य शिक्षा में पूर्व-व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के कुछ तत्त्व सम्मिलित होंगे और इसी प्रकार व्यावसायिक शिक्षा में सामान्य शिक्षा के कुछ तत्त्व सम्मिलित होंगे । ”

व्यावसायिक क्षमता का अर्थ-व्यावसायिक क्षमता का अर्थ है-

(क) कार्य के प्रति नई भावना को जन्म देना जिससे विद्यार्थी कार्य के महत्त्व को समझ सकें,

(ख) विद्यार्थियों को अनुभव कराना कि देश की समृद्धि इस बात पर निर्भर है कि हम जिस कार्य को भी आरम्भ करें उसे यथाशक्ति सफल और सुन्दर बनाएँ,

(ग) सभी अध्यापक इस बात का प्रयत्न करें कि यह बात पाठशाला में विद्यार्थियों के व्यवहार में स्पष्ट रूप से दिखाई दे, और

(घ) शिक्षा के सभी स्तरों पर व्यावसायिक क्षमता का विकास हो जिससे औद्योगिक और तकनीकी क्षेत्र में कुशल व अनुभवी व्यक्ति मिल सकें ।

शिक्षा के व्यवसायीकरण की आवश्यकता (Need for Vocationalization of Education)—आधुनिक औद्योगिक समाज की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तथा भावी नागरिकों को तद्नुरूप उत्पादकतामूलक शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा का व्यवसायीकरण न केवल आवश्यक है अपितु अनिवार्य हो गया है। छात्रों को रोजगार प्राप्त करने, उन्हें स्वरोजगार के कार्य स्थापित करने तथा उचित कौशल निर्माण करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा का विशेष योगदान है। देश में बढ़ते हुए पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या घटाने की, उनकी क्षमताओं एवं योग्यताओं का उचित उपयोग करने का केवल एक ही मार्ग है और वह है शिक्षा का व्यवसायीकरण ।

शिक्षा का व्यवसायीकरण निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण है –

  1. विद्यार्थियों की विभिन्न योग्यताओं एवं अभिरुचियों का विकास — स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा में बहुत विस्तार हुआ । विभिन्न योग्यताओं तथा अभिरुचियों वाले विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल में प्रवेश पाने लगे । सभी विद्यार्थियों को एक ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना उनके प्रति अन्याय है । आवश्यकता इस बात की है कि विभिन्न कोर्सों की व्यवस्था करके उनकी योग्यताओं तथा रुचियों को उचित दिशा में विकसित होने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाएँ । शिक्षा का व्यवसायीकरण ऐसे अवसर प्रदान करने की ओर महत्त्वपूर्ण कदम है।
  2. बेरोजगारी की समस्या का समाधान – आज देश के शिक्षितों को बेरोजगारी की समस्या का सामना करना है। शिक्षा के विकास के साथ-साथ बेरोजगारों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है । इसका एक कारण है कि शिक्षा विद्यार्थियों को रोजगार के लिए तैयार नहीं करती है । आज तक जो स्कूली शिक्षा चली आ रही है वह केवल क्लर्क ही तैयार करती है । शिक्षित उम्मीदवारों की संख्या तो बढ़ती जा रही है परन्तु क्लर्कों के पद उस मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं । अतः यह आवश्यक है कि शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाए कि वे अपने पाँव पर खड़े हो सकें ।
  3. देश की उत्पादकता बढ़ाना – कोठारी आयोग ने उत्पादकता के विकास को शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग माना है । यह एक सर्वमान्य सत्य है कि किसी भी देश की प्रगति उसकी उत्पादन क्षमता पर निर्भर होती है। लोग जितना ज्यादा उत्पादक कार्यों में लगेंगे, देश उतना ज्यादा समृद्ध होगा । शिक्षा का व्यवसायीकरण विद्यार्थियों को उत्पादकता की ओर अग्रसर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। शिक्षा के व्यवसायीकरण के महत्त्व को दर्शाते हुए कोठारी आयोग ने कहा है, “देश में उत्पादेयता बढ़ाने के लिए माध्यमिक शिक्षा को प्रबल व्यवसायीकरण रूप देना अत्यन्त आवश्यक है । “
  4. देश का तेज गति से आर्थिक विकास- देश में आर्थिक विकास निहित प्राकृतिक साधनों की कमी नहीं, परन्तु उनका उचित प्रयोग न होने के कारण वे व्यर्थ जा रहे हैं या फिर विदेशी लाभ उठा रहे हैं। इसी कारण हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर है। हमारा देश औद्योगीकरण की ओर अग्रसर है, परन्तु कुशल कारीगरों तथा उचित प्रकार से प्रशिक्षित व्यक्तियों के अभाव में उतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पा रहा है। इसका मुख्य कारण हमारी शिक्षा पद्धति है जो प्रायः पुस्तकीय ज्ञान पर आधारित है। साथ ही अव्यावहारिक तथा अव्यावसायिक भी है। देश की तीव्र आर्थिक गति तभी हो सकती है जब विभिन्न क्षेत्रों के लिए उचित ढंग से प्रशिक्षित कर्मचारी मिल सकें ।
  5. नैतिक मूल्यों का विकास – प्रायः यह देखा गया है कि बेरोजगारी अपराध वृत्ति को बढ़ावा देती है “खाली मन शैतान का होता है ।” अतः व्यक्ति को इस प्रकार का प्रशिक्षण मिलना चाहिए जिससे वह सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सके । व्यावसायिक शिक्षा व्यक्ति को जीवन निर्वाह के लिए सक्षम बनाकर उसका नैतिक विकास भी कर सकती है ।
  6. शिक्षा प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्ण बनाना – रटने – रटाने की शिक्षा का कोई उद्देश्य नहीं होता । व्यक्ति किसी व्यवसाय के योग्य न होने के कारण पढ़ाई करता चला जाता है और ऐसी शिक्षा प्राप्त करता है जिसका वास्तविक जीवन में कोई अर्थ नहीं होता । अतः शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए उसे व्यावसायिक मोड़ देना आवश्यक है ।
  7. आनन्द की प्राप्ति- मनुष्य को सच्चा आनन्द उस समय प्राप्त होता है जब इसे अपनी रुचि का व्यवसाय मिल जाता है। शिक्षा के व्यवसायीकरण करने से व्यक्तियों को उनकी विशिष्ट योग्यताओं के विकास के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं। वैसे आनन्द की प्राप्ति कई कारकों पर निर्भर है।
  8. उचित व्यक्तियों के लिए उचित स्थान — शिक्षा का व्यवसायीकरण उचित व्यक्तियों को उचित स्थान तथा कार्य प्राप्त करने में सहायता देता है तथा मानवीय प्रतिभा और साधनों के अपव्यय को रोकता है।

व्यावसायिक शिक्षा का भारत में सिंहावलोकन (Overview of Vocational Education in India) – माध्यमिक स्कूलों के छात्रों के लिए व्यावसायिक शिक्षा को आरम्भ करने की सिफारिश सबसे पहले 1882 में हण्टर कमीशन अथवा शिक्षा आयोग 1882 ने की । उसके पश्चात् शिक्षा के व्यवसायीकरण करने के पक्ष में अनेक कमेटियों तथा आयोगों ने सुझाव दिए । इसमें कुछ इस प्रकार हैं— कलकत्ता विश्वविद्यालय कमीशन 1917, हटांग कमेटी 1929, सप्रू आयोग 1934, बेसिक शिक्षा समिति 1937, बुडऐबट रिपोर्ट 1936-37, माध्यमिक शिक्षा आयोग 1936-37, शिक्षा आयोग 1964-66, 10+2 कमेटी रिपोर्ट 1937 (10+2), आदिशेषय्या राष्ट्रीय शिक्षा समिति 1987, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने देश में शिक्षा के व्यवसायीकरण की एक विस्तृत योजना बनाई है ।

व्यावसायिक शिक्षा के निहितार्थ (Implications of Vocationalisation of Education)—व्यावसायिक शिक्षा के प्रभावी विकास के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है—

  1. उचित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का प्रावधान ।
  2. उचित सामग्री का प्रावधान |
  3. उचित निर्देशन तथा परामर्श का प्रावधान |
  4. आर्थिक विकास के संदर्भ में मानव संसाधनों की पूर्ति ।

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