शिक्षा द्वारा समाज के सभी वर्गों विशेषकर कमजोर तथा पिछड़े वर्ग के कल्याण की विवेचना करें ।
उत्तर – शिक्षा का सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास में विशेष महत्त्व है। इस दिशा में कई अन्तिम कदम उठाए गए हैं। परन्तु शिक्षा का कमजोर तथा पिछड़े वर्गों के लिए बहुत महत्त्व है । ऐसे वर्गों की शिक्षा के लिए अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं तथा कार्यान्वित की जा रही हैं । इन योजनाओं द्वारा समाज के पिछड़े वर्गों का विकास किया जा रहा है। यह माना जा रहा है कि इनके विकास से देश का कल्याण स्वतः हो जाता है क्योंकि ये वर्ग देश के अभिन्न अंग हैं । विभिन्न योजनाओं का विवरण अलग से दिया गया है ।
यहाँ यह लिखना भी उचित प्रतीत होता है कि समाज कल्याण का अर्थ केवल समाज में छुआ-छूत दूर करना तथा बाल विवाह रोकना ही नहीं है बल्कि समाज कल्याण का व्यापक अर्थ है । अतः इसी के अनुसार यह विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है ।
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि शिक्षा प्रक्रिया का किसी भी समाज के आर्थिक, मानव संसाधन तथा राजनीतिक विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
जो समाज अविकसित अथवा विकासोन्मुख हैं, उनको प्रगति करने और विकसित होने के लिए शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। शिक्षा के द्वारा ही आर्थिक उन्नति संभव है। आर्थिक उन्नति के द्वारा सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं आध्यात्मिक उन्नत हो सकती है। आज हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में जाने के लिए उत्सुक है । इसके सम्मुख अनेक समस्याएँ हैं जो इस लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक हो रही हैं । इन समस्याओं का समाधान शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। हमारे देश का लक्ष्य धर्म-निरपेक्ष समाजवादी सम की स्थापना करना तथा देश में भावात्मक एकता, आर्थिक विकास एवं सामाजिक समानता स्थापित करना है। इन सब लक्ष्यों की पूर्ति शिक्षा द्वारा ही हो सकती है। शिक्षा ही लोगों की भावनाओं, प्रवृत्तियों एवं आकांक्षाओं को परिवर्तित करके उनमें प्रगति की ओर जाने की प्रेरणा उत्पन्न कर सकती ।
प्राय: यह माना गया है कि शिक्षा ही हमारे देश में फैली हुई गरीबी को दूर करने में • समर्थ हो सकती है। शिक्षा के द्वारा ही कृषि का उन्नयन, उद्योग-धन्धों की वृद्धि, प्रौद्योगिकी विकास एवं मनोवैज्ञानिक प्रगति सम्भव है। शिक्षा के द्वारा ही सामाजिक चेतना को जाग्रत करके प्रगतिशील समाज की स्थापना की जा सकती है। शिक्षा के द्वारा ही हम अपनी त्रुटियों को पहचानकर उन्हें दूर कर सकते हैं। शिक्षा ही समाज को रूढ़ियाँ, ऊँच-नीच का भेदभाव इत्यादि को दूर करके समानता, एकता और भ्रातृत्व के भाव जाग्रत कर सकती है। संक्षेप में यह हम विश्वासपूर्वकं कह सकते हैं कि देश को प्रगतिशील बनाने और समाज को उन्नत करने के लिए शिक्षा के समान दूसरा कोई साधन नहीं है ।
देश की प्रगति एवं विकास के लिए हमारे ज्ञान, कौशल एवं अभिरुचि में वृद्धि एवं नए आदर्शों तथा मूल्यों की स्थापना आवश्यक है । इस कार्य में शिक्षा का योगदान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस सम्बन्ध में कोठारी शिक्षा आयोग (1964-66) ने विस्तृत प्रकाश डाला है।
यदि हमें क्रांति लाए बिना शान्तिपूर्ण ढंग से सामाजिक परिवर्तन, वैज्ञानिक प्रगति, प्रौद्योगिक उन्नति एवं आर्थिक विकास करना है, तो उसका एकमात्र उपाय है शिक्षा की वृद्धि | देश की प्रगति के लिए अन्य साधन भी हो सकते हैं, परन्तु शिक्षा से बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है । राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली ही एकमात्र साधन है, जिसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचा जा सकता है और उसे देश की प्रगति में भागीदार बनाया जा सकता है । परन्तु यह कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिसे घुमाते ही मनुष्य की सारी कल्पनाएँ मूर्त हो जाएँ | यह राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली, मनीषियों के चिन्तन के अतिरिक्त दृढ़ प्रतिज्ञ समर्पित जीवन एवं त्याग की अपेक्षा करती है, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह रामबाण औषधि है और विकसित देशों का इतिहास सिद्ध करता है कि इस के द्वारा उन्होंने इतनी प्रगति की है कि उनके निवासी आज संसार का नेतृत्व कर रहे हैं और अविकसित तथा विकासोन्मुख देश उनके मुखापेक्षी बने हुए हैं। यदि भारतवर्ष में भी लोगों में निष्ठा हो और वे शिक्षा को उन्नति का साधन बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाएँ तो भारत भी विकसित देशों की श्रेणी में शीघ्र आ सकता है ।
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दो प्रकार की योजनाएँ अधिक उपयोगी हो सकती हैं—
- भौतिक साधनों का विकास (Development or Exploitation of Physical जो and Natural Resources) — कहा जाता है कि भारतवर्ष एक ऐसा देश है, समृद्ध होते हुए भी दरिद्र है। यह विरोधाभास नहीं वरन् वास्तविकता है। भारत में प्राकृतिक साधनों की कमी नहीं है | अंग्रेजी राज में इन साधनों के उपयोग करने का वांछित प्रयास नहीं किया गया था | परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर देश का भूगर्भिक सर्वेक्षण किया जाने लगा और नई-नई खानें, नए-नए खनिज पदार्थ प्रकट होने लगे । प्राकृतिक साधनों जैसे— देश की जलशक्ति, वन सम्पत्ति, औद्योगिक संस्थानों की स्थापना होने लगी है। कृषि में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश खाद्य सामग्री के विषय में स्वावलम्बी हो गया है। हमारे उद्योग-धन्धे विदेशों को अपना उत्पादन निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं। हमारे कुशल अभियन्ता एवं वैज्ञानिक विदेशों में जाकर अपनी योग्यता का प्रदर्शन करके उनका औद्योगिक विकास कर रहे हैं। फिर भी देश में अभी बहुत पिछड़ापन है। इसका प्रमुख कारण है, सामान्य एवं तकनीकी शिक्षा का अभाव । शिक्षा द्वारा देश में जाग्रति के साथ-साथ श्रम के महत्त्व का प्रचार करना और जनता में स्वावलम्बी बनने और हस्तकौशल के द्वारा अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए प्रयास करने की प्रेरणा उत्पन्न करना आवश्यक है ।
- जनशक्ति का विकास (Development of Human Resources) — भारत में जनशक्ति की कमी नहीं है । परन्तु जनशक्ति का संगठन एवं उसका सदुपयोग आवश्यक है, यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही सम्पन्न हो सकता है। जनता को शिक्षित करके उसे उत्पादक कार्यों में लगाना आवश्यक है । हमारा देश कृषि प्रधान है, इसके अधिकांश निवासी गाँवों में रहने वाले तथा कृषि पर जीवन बिताने वाले हैं । कृषि का धंधा बहुत पिछड़ा हुआ है । इसमें घरेलू या सहायक धन्धों की आवश्यकता है । इस कार्य के लिए छोटे-छोटे घरेलू धन्धों. का विकास करना आवश्यक है । अभी तक सरकार का विशेष ध्यान शहरों की ओर बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों के विकास की ओर रहा है । परन्तु जब तक गाँवों में यातायात के साधनों की सुविधा नहीं होगी, तब तक नगरों से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होगा, तब तक देश की गरीबी दूर नहीं हो सकेगी । अतः शिक्षा का प्रचार-प्रसार गाँवों में अधिक करने की आवश्यकता है | इस समय सबसे प्रमुख नारा होना चाहिए ‘गाँवों की ओर चलो।’ हमारी जनशक्ति का जबतक धिकांश भाग गाँवों में रहती है । अतः शिक्षित व्यक्तियों – अध्यापकों, डॉक्टरों, समाज-सेवी कार्यकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों, कृषि वैज्ञानिकों आदि को गाँवों में जाकर अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की गति को बढ़ाना चाहिए, जो बहुत पिछड़ी हुई है। इसमें घरेलू तथा सहायक धन्धों की आवश्यकता का विकास करना आवश्यक है। अभी तक सरकार का विशेष ध्यान नगरों तथा बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों के विकास की ओर रहा है, परन्तु जब तक गाँवों में शिक्षा द्वारा जाग्रति नहीं उत्पन्न की जाती, जब तक गाँवों में यातायात के साधनों की सुविधा नहीं होगी, तब तक उनकी तथा देश और समाज की गरीबी दूर नहीं होगी । अतः शिक्षा का प्रसार तथा विस्तार गाँवों में करने की आवश्यकता है। इस समय सबसे प्रमुख नारा होना चाहिए ‘गाँवों तथा झुग्गी-झोंपड़ों आदि क्षेत्रों में शिक्षा का विकास’ इस प्रकार उनके कल्याण से राष्ट्रीय कल्याण हो सकेगा।
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