शिक्षा में समानता से क्या तात्पर्य है ? शिक्षा में समान अवसर के महत्त्व पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – शिक्षा में समानता से क्या तात्पर्य है ? शिक्षा में समान अवसर के महत्त्व पर प्रकाश डालें ।
(What do you mean by equality in education? Throw light on the importance of equality of opportunity in education.)

उत्तर – समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को आत्मविकास के समान अवसर मिलने चाहिए। अवसरों के अभाव में किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा अथवा योग्यता अविकसित न रह जाए ।

समानता का अर्थ यह नहीं है कि सभी लोगों के साथ बिल्कुल एक जैसा बर्ताव किए जाय । इस सन्दर्भ में यह लिखना न्यायसंगत है कि व्यक्तियों में विभिन्न योग्यताएँ होती हैं । एक जैसी सुविधाओं से प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूरी नहीं की जा सकती हैं | इस बात को स्पष्ट करने के लिए हम कुछ उदाहरणों को लेते हैं। शिक्षा में ‘समान अवसरों’ का अर्थ यह है कि सभी बच्चों को स्कूल जाने तथा शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले, यह नहीं है कि किसी की उपलब्धि देखे बिना सभी को सभी कक्षाओं में पास किया जाए या सभी को एक जैसे ग्रेड या अंक दिए जाएँ। इसका यह भी अर्थ नहीं कि प्रत्येक छात्र को वाणिज्य अथवा विज्ञान विषय कक्षा 11 में दिए जाएँ । ‘समान अवसरों’ का वास्तविक अर्थ यह है कि सभी को पर्याप्त अवसर मिलें जिससे उनका अधिकतम विकास हो । यदि कुछ क्षेत्रों में शिक्षा की सुविधाएँ न हों तो सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ । यदि कुछ छात्र पढ़ाई आदि में कमजोर हैं तो उसके लिए उचित व्यवस्था की जाए ।

वैयक्तिक भिन्नता सृष्टि का व्यापक नियम है । दो व्यक्ति चाहे वे जुड़वाँ भाई या बहिन ही क्यों न हों, बिल्कुल समान नहीं होते, उनमें भी कुछ-न-कुछ अन्तर रहता ही है । भौतिक शरीर की बनावट के अतिरिक्त उनकी मानसिक शक्ति, उनके विचार, रुचि, ढंग, अभिवृत्ति, विश्वास आदि के कारण उनमें अन्तर होना स्वाभाविक से भी है । अतः सभी को एक ही प्रकार की शिक्षा देने और समान अवसर प्रदान करने से यह आवश्यक नहीं है कि सबका विकास एक समान हो । अवश्य ही कोई तो उस अवसर का लाभ उठाकर उस शिक्षा से लाभान्वित होगा और कोई सर्वथा विफल होगा । समान अवसर का केवल यही तात्पर्य है कि धनी-गरीब दोनों को एक प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर मिलेगा और आर्थिक कठिनाई उसमें बाधक न होगी। इसके लिए अन्य प्रकार की भौतिक बाधाएँ भी दूर कर देनी चाहिए । जाति-भेद, रंग भेद, धार्मिक विश्वास, लिंग भेद इत्यादि किसी प्रकार का अवरोध नहीं होना चाहिए, जिससे प्रत्येक युवक-युवती को अपनी रुचि की संस्था एवं पाठ्य विषय चुनने की पूरी स्वतन्त्रता होनी चाहिए ।

शिक्षा में समान अवसरों का महत्त्व (Significance of Equality of Opportunity in Education)—पं. जवाहरलाल नेहरू ने समानता के बारे में कहा, “हमें ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने गुण और योग्यता के अनुसार उन्नति करने के अवसर मिलें । मैं चाहता हूँ कि शिक्षा का इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकास किया जाए। ”

कोठारी शिक्षा आयोग (1964-66) ने इस विषय में अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है –

“ शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है सबको समान अवसर प्रदान करना, जिससे पिछड़े हुए तथा सामाजिक सुविधाओं से वंचित वर्गों के बच्चें भी अपनी आर्थिक एवं सामाजिक दशा सुधारने के लिए शिक्षा को साधन के रूप में प्रयुक्त कर सकें। जिस समाज में सामाजिक न्याय को महत्त्व दिया जाता है और जो सामान्य व्यक्ति की दशा सुधारने के लिए इच्छुक हैं एवं सभी उपलब्ध प्रतिभाओं का उपयोग करना चाहता है उसे देश के प्रत्येक वर्ग के लोगों को क्रमशः अवसर की समानता प्रदान करनी चाहिए । कल्याणकारी साम्यवादी समाज की स्थापना के लिए एकमात्र यही उपाय है जिससे सबल द्वारा दुर्बल का शोषण कम-से-कम हो सके।

हमारा देश अब प्रजातान्त्रिक गणराज्य है । इसके संविधान में प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जिनमें स्वतन्त्रता ‘विचार भाषण एवं लेखन की समानता’ एवं भ्रातृत्व प्रमुख मौलिक अधिकार हैं । अतः शिक्षा में भी समान अवसर की माँग करने का प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। अब जाति-पाँति, धर्म-सम्प्रदाय, राजनैतिक विचार या लिंग भेद के कारण शिक्षा प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता । प्रजातान्त्रिक देश में प्रत्येक नागरिक को, जो मतदाता है, शिक्षित होना आवश्यक है । अतः राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह सबकी शिक्षा के लिए निःशुल्क व्यवस्था करें, जिससे आर्थिक बाधा के कारण कोई व्यक्ति शिक्षा से वंचित न रह जाए । प्रजातन्त्र की सफलता मतदाताओं पर है और मतदाता जब तक शिक्षित नहीं है वे अपना उत्तरदायत्वि और अपने मत का महत्त्व नहीं समझ सकते । अतः कम-से-कम प्रारम्भिक शिक्षा (वरन् अब तो माध्यमिक स्तर तक ) सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए | अनिवार्य शिक्षा तभी सफल हो सकती है जब वह निःशुल्क भी हो, क्योंकि शिक्षा यदि खर्चीली होगी तो बहुत से वर्गों के बच्चे क्षमता, रुचि एवं आकांक्षा होते हुए शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाएँगे । अतः शिक्षा के अवसर की समानता प्रजातान्त्रिक देश की अनिवार्य आवश्यकता है।

निम्नलिखित बातों से शिक्षा में समानता की आवश्यकता है –

  1. शिक्षा में मानवतावाद – सभी धर्म मानवता की बराबरी में विश्वास रखते हैं । अतः शिक्षा में बराबरी का अवसर मिलना चाहिए ।
  2. लोकतन्त्र के लिए अनिवार्य शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है, लोकतन्त्र समाज की रचना । अतः शिक्षा में समानता का अधिकार देना आवश्यक है ।
  3. कल्याणकारी समाज – संविधान में एक कल्याणकारी समाज की परिकल्पना की गई है । कल्याणकारी समाज का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब कि शिक्षा में समानता हो ।
  4. शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास – सर्वांगीण उद्देश्य की प्राप्ति की माँग है कि शिक्षा में समान अवसर उपलब्ध हों ।
  5. देश का आर्थिक विकास – देश के आर्थिक विकास में सभी नागरिकों की भागीदारी चाहिए | सन्देह नहीं है कि यदि सभी को शिक्षा में समान अवसर प्राप्त नहीं होंगे तो सभी लोग अपनी क्षमता तथा प्रतिभा के अनुरूप देश के विकास में अपना योगदान नहीं दे सकते ।
  6. मानव अधिकार – संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकार के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र (1948) में ‘शिक्षा के अधिकार’ का समर्थन किया है ।
  7. प्रतिभा की खोज- समाज में विभिन्न प्रकार की प्रतिभा वाले व्यक्ति होते हैं । परन्तु प्रतिभा की खोज बिना शिक्षा के हो नहीं सकते। शिक्षा में जब समान अवसरों की व्यवस्था होगी तो छिपी हुई प्रतिभा को विकसित होने का अवसर मिलेगा ।
  8. समाज का समाजवादी ढाँचा-समाज का समाजवादी ढाँचा माँग करता है कि सभी को शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए ।
  9. आधुनिकीकरण – समाज के प्रत्येक क्षेत्र अर्थात् सामाजिक तथा राजनैतिक को आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक है कि सभी को समानता तथा निष्पक्षता मिले ।
  10. धार्मिक तथा आध्यात्मिक विचार–सभी संतों तथा महात्माओं ने समानता पर बल दिया है ।

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