सीखने के सिद्धान्त का वर्णन करें ।
प्रश्न – सीखने के सिद्धान्त का वर्णन करें ।
(Describe the principles of Learning.)
उत्तर– थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर कुछ सीखने के नियमों का प्रतिपादन किया है जिन्हें दो वर्गों में विभक्त किया गया है— मुख्य नियम तथा गौण नियम । मुख्य नियमों के अन्तर्गत तीन नियम हैं तथा गौण नियमों के अन्तर्गत पाँच हैं । इस प्रकार थार्नडाइक से सीखने के आठ नियम बताए हैं –
मुख्य नियम ( Primary Laws) :
(1) तत्परता का नियम (Law of Readiness)
(2) अभ्यास का नियम (Law of Exercise)
(3) प्रभाव का नियम (Law of Effect)
- तत्परता का नियम (Law of Readiness) — सीखने के इस नियम का अभिप्राय है कि जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार रहता है तो उसमें उसे आनन्द आता है और वह उसे शीघ्र सीख लेता है तथा जिस कार्य के लिए वह तैयार नहीं होता और उस कार्य को करने के लिए बाध्य किया जाता है तो वह झुंझला जाता है और उसे शीघ्र सीख भी नहीं पाता । तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित होती है । इच्छा न होने पर प्राणी डर के मारे पढ़ने अवश्य बैठ जाएगा लेकिन यह कुछ सीख नहीं पाएगा । तत्परता ही बालक के ध्यान को केन्द्रित करने में सहायक होती है ।
तत्परता के नियम का तात्पर्य यह है कि जब प्राणी अपने को किसी कार्य को करने या सीखने के लिए तैयार समझता है तो वह बहुत शीघ्र कार्य करता है या सीख लेता है और उसे अधिक मात्रा में संतोष भी मिलता है । सीखने को तैयार न होने पर उसे उस क्रिया में असन्तोष मिलता है ।
- अभ्यास का नियम (Law of Exercise) – किसी क्रिया को बार-बार करने या दोहराने से वह याद हो जाती है और छोड़ देने पर या न दोहराने से वह भूल जाती है । इस प्रकार यह नियम प्रयोग करने तथा प्रयोग न करने पर आधारित है। उदाहरणार्थ – कविता और पहाड़े याद करने के लिए उन्हें बार बार दोहराना पड़ता है तथा अभ्यास के साथ-साथ उपयोग में भी लाना पड़ता है। ऐसा न करने पर सीखा हुआ कार्य भूलने लगता है, उदाहरणार्थ—याद की गई कविता को कभी न सुनाया जाए तो वह धीरे-धीरे भूलने लगती हैं । यही बात साइकिल चलाना, टाइप करना, संगीत आदि में भी लागू है ।
थार्नडाइक के अनुसार अभ्यास के नियम के अन्तर्गत दो उप-नियम आते हैं —(1) उपयोग का नियम (Law of Use),(2) अनुपयोग का नियम (Law of Dis-use)उपयोग का नियम (Law of Use)–’जब एक परिवर्तनीय संयोग एक स्थिति और अनुकिया के बीच बनता है तो अन्य बातें समान होने पर वह संयोग दृढ़ हो जाता है।अनुपयोग का नियम (Law of Dis-use)—” अनुपयोग के नियम के अनुसार कुछ समय तक किसी परिस्थिति और अनुकिया के बीच पुनरावृत्ति न होने से संयोग क्षीण पड़ जाता है ।डगलस एंव हालैण्ड के अनुसार — “ जो कार्य बहुत समय तक किया या दोहराया नहीं जाता है, वह भूल जाता है । इसी को अनुपयोग या अनभ्यास का नियम कहते हैं । “नियम की आलोचना – थार्नडाइक के अभ्यास के नियम की कड़ी आलोचना भी हुई । इस नियम के अन्तर्गत समझने पर बल न देकर यन्त्रवत पुनरावृत्ति या अभ्यास पर बल दिया गया । समझ बूझकर सीखने से भूल कम होती है । मानव जीवन में इस प्रकार की यन्त्रवत पुनरावृत्ति नहीं मिलती । थार्नडाइक ने इस कमी को महसूस किया तथा 1935 के लगभग उसने अभ्यास के नियम में संशोधन कर नियंत्रित अभ्यास का नियम प्रतिपादित किया । नियंत्रित अभ्यास क्रिया में क्रिया की पुनरावृत्ति के साथ-साथ अर्थ को समझने, तर्क करने, विचारों का साहचर्य, सीखने के संकेतों का अनुसरण आदि सभी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं ।दूसरी आलोचना के अनुसार किसी क्रिया को याद रखना उसकी पुनरावृत्ति मात्र पर निर्भर नहीं होता । यदि ऐसा नहीं होता तो बिल्ली भ्रांति सन्दूक को खोलने में सही व गलत अनुक्रियाओं दोनों को ही याद रखती, परन्तु वह केवल सही अनुक्रिया को याद रखती है।
- प्रभाव का नियम (Law of Effect) – थार्नडाइक का यह नियम सीखने और अध्यापन का आधारभूत नियम है । इस नियम को ‘संतोष – असंतोष’ का नियम भी कहते हैं । इसके अनुसार किस कार्य को करने से प्राणी को हितकर परिणाम प्राप्त होते हैं और जिसमें सुख और सन्तोष प्राप्त होता है, उसी को व्यक्ति दोहराता है । जिस कार्य को करने के कष्ट होता है और दुःख फल प्राप्त होता है, उसे व्यक्ति नहीं दोहराता है । इस प्रकार व्यक्ति उसी कार्य को सीखता है जिससे उसे लाभ मिलता है तथा संतोष प्राप्त होता है। संक्षेप में, जिस कार्य के करने से पुरस्कार मिलता है उसे सीखते हैं और जिस कार्य के करने से दण्ड मिलता है उसे नहीं सीखा जाता ।
थार्नडाइक ने बताया कि “संतोषप्रद परिणामों से उत्तेजना और प्रतिक्रिया या अनुक्रिया का अनुबन्ध दृढ़ हो जाता है । “इसके विपरीत “दुःखद अथवा असंतोषजनक परिणामों से उत्तेजना तथा अनुक्रिया का सम्बन्ध निर्बल हो जाता है । “नियम की आलोचना – अभ्यास के नियम की तरह ही प्रभाव के नियम की भी कड़ी आलोचना हुई । व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक वाटसन ने इस नियम से अपनी असहमति प्रकट की और कहा कि सन्तोष आत्मगत शब्द हैं ।इस नियम की आलोचना इस बात से हुई कि पुरस्कार जिस प्रकार सीखने के सम्बन्ध को शक्तिशाली बनाता है उस प्रकार से सम्बन्ध को कमजोर नहीं बनाता है । दण्ड के आधार पर मानव एवं पशु भी उस क्रिया को पूर्ण रूप से सीख लेता है जिसमें उसे दण्ड मिलता है । बहुत से पशु जैसे— घोड़े को चाल सिखाने, भालू को नाच सिखाने आदि में दण्ड का ही प्रयोग होता है ।
गौण नियम (Secondary Laws) :
(1) बहु-प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)
(2) मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set )
(3) आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)
(4) समानता का नियम (आत्मसात) (Law of Assimilation or Analogy )
(5) साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting )
- बहु प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response) — इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने जब नवीन समस्या आती है तो वह उसे सुलझाने के लिए विविध प्रकार की क्रियाएँ करता है और तब तक करता रहता है जब तक कि वह सही अनुक्रिया की खोज नहीं करता। ऐसा होने पर उसकी समस्या सुलझ जाती है और उसे संतोष मिलता है। असफल होने पर व्यक्ति को हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि एक के बाद एक उपाय पर अमल करते रहना चाहिए जब तक कि सफलता प्राप्त न हो जाए । यह नियम ‘प्रयत्न एवं भूल’ पर आधारित है ।
- मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set) — इस नियम को तत्परता या अभिवृत्ति का नियम भी कहते हैं । यह नियम इस बात पर बल देता है कि बाह्य स्थिति की ओर प्रतिक्रियाएँ व्यक्ति की मनोवृत्ति पर निर्भर करती हैं अर्थात्, यदि व्यक्ति मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार है तो नवीन क्रिया को आसानी से सीख लेगा और यदि वह मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार नहीं है तो उस कार्य को नहीं सीख सकेगा । निद्रा, सभ्यता, थकावट, आकांक्षाएँ, भावनाएँ आदि सभी हमारी मनोवृत्ति को प्रभावित करती हैं । उदाहरणार्थ—मूर्ति को देखकर हिन्दू हाथ जोड़ लेते हैं, मूर्ति के सामने मस्तक टेक कर सन्तुष्ट होते हैं तथा मूर्ति को चोट पहुँचाने से उन्हें भी चोट पहुँचती है।
- आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity) — यह नियम इस बात पर बल देता है कि कोई एक प्रतिक्रिया सम्पूर्ण स्थिति के प्रति नहीं होती हैं । यह केवल सम्पूर्ण स्थिति के कुछ पक्षों अथवा अंशों के प्रति ही होती है । जब हम किसी स्थिति का एक ही अंश दोहराते हैं तो प्रतिक्रिया हो जाती है । इस नियम में इस प्रकार ‘अंश से पूर्ण की ओर’ शिक्षण सूत्र का अनुसरण किया जाता है । पाठ-योजना को छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्त करके पढ़ाना इसी नियम पर आधारित है । संक्षेप में, व्यक्ति किसी समस्या के उपस्थित होने पर उसके अनावश्यक विस्तार को छोड़कर उसके मूल तत्त्वों पर अपनी अनुक्रिया केन्द्रित कर लेता है । आंशिक क्रियाओं को करके समस्या का हल ढूँढ लेने को ही थार्नडाइक ने आंशिक क्रिया का नियम बताया है ।
- समानता का नियम (Law of Assimilation or Analogy ) — इस नियम का आधार पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव है। किसी नवीन परिस्थिति या समस्या के उपस्थित होने पर व्यक्ति उससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है, जिससे वह पहले भी गुजर चुका है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति नवीन परिस्थिति में वैसी ही अनुक्रिया करता है जैसी उसने पुरानी परिस्थिति में की थी । समान तत्त्वों के आधार पर नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बद्ध करके पढ़ाने से सीखना सरल हो जाता है । ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ शिक्षण सूत्र इसी नियम पर आधारित है ।
- साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting) — इस नियम के नाम से ही स्पष्ट है, इसमें सीखने की अनुक्रिया का स्थान परिवर्तन होता है । यह स्थान परिवर्तन मूल उद्दीपक से जुड़ी हुई अथवा उसकी किसी सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति किया जाता है। उदाहरणार्थ- भोजन सामग्री को देखकर कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगती है लेकिन कुछ बाद खाने के प्याले को देखकर ही लार टपकरने लगती है । थार्नडाइक ने अनुकूलित – अनुक्रिया को सहचारी स्थान परिवर्तन का ही एक विशेष रूप माना है ।
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