स्कूलों के लिए स्थान संबंधी प्रबंधन के सुझाव तथा आवंटन की कार्य विधियों पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – स्कूलों के लिए स्थान संबंधी प्रबंधन के सुझाव तथा आवंटन की कार्य विधियों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – स्कूल भवनों के लिए स्थान तथा इसके उपयोग की समस्याएँ जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है। बहुत गम्भीर बनती जा रही हैं। स्कूल के लिए स्थान के बारे में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए :
(i) स्कूल का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक अथवा उच्च माध्यमिक(ii) स्कूल में पढ़ाए जाने वाले विषय, विशेषकर उच्च माध्यमिक स्कूल |(iii) शहरी क्षेत्र अथवा देहाती क्षेत्र ।(iv) स्कूल में अनुभागों तथा छात्रों की संख्या ।(v) स्कूल में खेलों की व्यवस्था ।(vi) स्कूल में कृषि फार्म की व्यवस्था ।(vii) स्कूल में वर्कशॉप की व्यवस्था ।(viii) स्कूल में जिम (Gymnasium) की व्यवस्था ।(ix) स्कूल आवासीय है अथवा गैर आवासीय(x) स्कूल में छात्रावास ।(xi ) स्कूल में खुला पुस्तकालय अथवा परम्परागत पुस्तकालय ।(xii) स्कूल में तरणताल की व्यवस्था ।(xiii) स्कूल में घुड़सवारी की व्यवस्था आदि ।(xiv) स्कूल के निकट प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों के लिए निवास व्यवस्था |
नोट- साधारण स्कूल के लिए कितना स्थान चाहिए, इस पर पहले विचार किया जा चुका है।
स्कूलों के लिए स्थान के प्रबंधन के बारे में मुख्य सुझाव – शिक्षा आयोग (196466) तथा अन्य समितियों के संतुतियों के सन्दर्भ में नीचे दिए जा रहे हैं –
- नयी बस्तियों में स्कूलों में स्थान का आरक्षण (Reservation of Plots for Schools in New Colonies) – नयी बस्तियों तथा नगरों में विभिन्न प्रकार के स्कूलों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जाना चाहिए ।
- स्कूलों के लिए स्थानों का आवंटन (Allotment of Plots for Schools)आवंटन के कार्य में पारदर्शिता लाने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया जाए जो स्कूल भवनों के आवंटन संबंधी नियमावली निर्धारित करें ।
- शैक्षिक भवन विकास दलों की स्थापना (Foundation of Educational Building Development Groups) – प्रत्येक राज्य में सार्वजनिक निर्माण विभाग के अन्तर्गत किन्तु शिक्षा विभाग के निकट साहचर्य में काम करने वाले एक वस्तुशिल्प, एक शिक्षाविद्, एक प्रशासनिक कर्मचारी, एक सिविल इंजीनियर तथा एक लेखाकार होना चाहिए । ये सब पूरे समय के लिए कार्य करने को नियुक्त हों तथा इन्हें विशेष तकनीकी योग्यता वाले सदस्यों को सहयोजित अथवा सम्मिलित करने का अधिकार हो । इस वर्ग का मुख्य कार्य सरकारी स्कूली इमारतों की आयोजना एवं निर्माण सुधार करना होगा । गैर-सरकारी स्कूलों को भी इनका परामर्श प्राप्त होना चाहिए । राज्य स्तरीय दलों के कार्य को प्रभावशाली रूप से समन्वित करने के लिए केन्द्र में भी एक भवन-विकास दल की स्थापना की जाये ।
इन दलों के निम्नलिखित कार्य होंगे:(i) नवीन शैक्षिक प्रविधियों के आधार पर इमारती आवश्यकताओं का अध्ययन करना ।(ii) निर्माताओं के सहयोग से भवन निर्माण की नवीन प्राविधियों और नवीन विशिष्टियों का विकास करना ।(iii) विविध प्रकार की शैक्षिक इमारतों के लिए व्यावहारिक तथा किफायती योजना चित्रों का विकास करना ।(iv) भवन निर्माण सामग्री तथा मजदूरी की लागत का उचित निर्धारण ।(v) क्षेत्रीय परीक्षण (Field Trials) करना ।(vi) पूर्व प्रयुक्त योजना, चित्रों, विशिष्टयों तथा निर्माण प्राविधियों का मूल्यांकन ।(vii) देशी समान के अधिकाधिक उपयोग के तरीकों का अध्ययन केन्द्र स्थित वर्ग एक ऐसी पत्रिका का प्रकाशन कर सकता है जिसमें निर्माण की नवीनतम प्राविधियों तथा देश-विदेश, में, एक अर्से से स्वीकृत इमारतों के संबंध में किये जाने वाले अनुसंधान पर विशेषता प्रकाश डाला गया हो। राज्य सरकारों को यह आश्वस्त कर लेना चाहिए कि इन विकास- दलों की सिफारिशों पर अमल किया जाये ।
- स्कूल भवन बनवाने वाला अलग विभाग (Separate Department for School Building)-सरकारी इमारतों के निर्माण में विलम्ब से बचने के लिए सार्वजनिक निर्माण विभाग (Public Works Department) का एक विभाग अलग स्थापित किया जाये जो शैक्षिक भवनों के कार्यक्रम को पूरा करे ।
- शैक्षिक भवन निर्माण संघ की स्थापना (Formation of Educational Building Consortia) – शैक्षिक भवन विकास दलों के निर्माण की प्राविधियों तथा योजना चित्रों के मानकीकरण के बाद, औद्योगीकृत इमारतों से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए शैक्षिक भवन निर्माण संघ (इंग्लैण्ड में ‘क्लास्प’ नाम से प्रसिद्ध इसी प्रकार के संघों के ढंग पर ) स्थापित करने की सम्भावना पर विचार किया जाये ।
- मानकीकरण (Standardisation) – किसी विशिष्ट क्षेत्र निर्माण के लिए खाकों, विशिष्टियों तथा निर्माण प्राविधियों के मानकीकरण का कार्य शैक्षिक भवन विकास दल को करना चाहिए ताकि विभिन्न संघटक भागों का व्यावसायिक स्तर पर निर्माण किया जाये । इनसे किफायत होगी तथा निर्माण कार्य में गति आयेगी। भारतीय मानक संस्था जैसे संगठनों द्वारा मानकीकरण के क्षेत्र में काफी किया जा चुका है, जिसके आधार पर आगे अध्ययन किया जा सकता है।
- गैर-सरकारी स्कूलों की इमारतें- प्रत्येक राज्य में शैक्षिक भवन विकास दलों द्वारा तैयार किये कमखर्ची के उपायों से शैक्षिक भवनों की लागत में कमी करने के निमित्त गैर-सरकारी शैक्षिक संस्थाओं के प्रबंधकों को भी उनकी जानकारी करा देनी चाहिए तथा गैर-सरकारी प्रबंधकों को इमारत के लिए दिया हुआ सहायक अनुदान आँकी गई इसी ऊपरी लागत सीमा पर आधारित हो ।
- ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी (Responsibilities of Panchayats in Rural Area) – ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय ठेकेदार नहीं मिलते हैं। शहरी क्षेत्रों के ठेकेदार ग्राम्य क्षेत्रों में काम करने के लिए आमतौर पर अधिक पैसे लेते हैं। बहुत से दूर के गाँवों तक पहुँचने के लिए विभागीय साधन भी पर्याप्त नहीं है। इसलिए गाँवों की स्कूली इमारतों के निर्माण का कार्य ज्यादातर गाँवों के लोगों अथवा ग्राम पंचायतों के द्वारा ही किया जाना चाहिए ।
- विशिष्टियों और स्थानीय सामग्री का न्यायसंगत चयन (Judicious Selection of Specification and Local Material) – स्थानीय उपलब्ध सामग्री के चुनाव, सस्ते सामान के उपयोग, कुछ साज-सँवार को नजरअंदाज कर देने तथा निर्माण में हल्के स्तर से काम चला लेने से किफायत की जा सकती है । तथापि सामान की उपलब्धि, जलवायु सम्बन्धी स्थितियों, इमारतों की सुरक्षा तथा भवन की देख-भाल पर सम्भवतः खर्चे को ध्यान में रखना चाहिए ।
- निर्माण की तकनीकें (Techniques of Constructions) – विचारपूर्ण आयोजना और डिजाइन करने से तथाकथित ‘अस्थायी’ ढाँचे भी स्कूलों द्वारा प्रयुक्त बहुत-सी किराये की इमारतों से अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं । जहाँ कहीं भी जलवायु तथा अन्य स्थितियाँ अनुकूल हों, ऐसे ढाँचे बनाये जाने चाहिए । यदि पक्की इमारतें नितान्त आवश्यक हैं तो हमें तैयार ढाँचों, खोखली दीवारों, पहले से तैयार हिस्सों, दरवाजों और खिड़कियों के लिए प्रचलित सीमेंट ( आर. सी. सी.) कंक्रीट के चौखटों और केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्था तथा अन्य अनुसंधान संस्थाओं द्वारा विकसित भागों के उपयोगी जैसे निर्माण के तरीकों को अधिकाधिक काम में लाना होगा ।
- स्कूल भवन की सुरक्षा (Safety in the School ) – स्कूल भवन तथा पदार्थों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि प्रधानाचार्य अध्यापकवर्ग में से किसी को संरक्षक नियुक्त कर दे । अच्छा होगा यदि अध्यापकों एवं छात्रों की मिली-जुली कोई समिति बना दी जाये जो समय-समय पर सहायता प्रदान करे । प्रायः देखा गया है कि राजकीय स्कूलों में स्कूल भवन तथा सामग्री की देख-भाल की तथा उचित उपयोग की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता । समय-समय पर सब चीजों का निरीक्षण होता रहना चाहिए । प्रतिवर्ष सफेदी होनी चाहिए तथा मरम्मत आदि का कार्य तुरंत होना चाहिए । प्रतिदिन सफाई होनी चाहिए ।
साधारणतया स्कूल में निम्नलिखित दुर्घटनाओं का भय रहता है – (i) अग्निकाण्ड, (ii) सहसा किसी भाग का पतन, (iii) बिजली-ज्वलन, (iv) पानी का अस्वास्थ्यप्रद बहाव, (v) बाढ़ अथवा जल का इकट्ठा होना, (vi) मधुमक्खियों का छत्ता, (vii) वृक्षों का गिरना ।इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बचने के लिए स्कूल में उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
- द्विपाठी पद्धति (Double Shift System) – स्थान का अधिकतम प्रयोग करने के लिए जहाँ आवश्यक हो, द्विपाठी पद्धति को अपनाया जाए। दोनों स्कूलों के प्रधानाध्यापकों तथा स्टाफ में पूर्ण तालमेल होना चाहिए ।
- समय सारणी (Time Table) – स्कूल में समय सारणी की व्यवस्था इस प्रकार की जाए कि सभी कमरों, पुस्तकालय कक्ष, प्रयोगशालायें आदि तथा सामान का अधिक से अधिक प्रयोग हो सके ।
- स्कूल हॉल का प्रयोग – प्रायः देखा जाता है कि स्कूल हॉल का उपयोग केवल स्कूल सभा तथा अन्य कुछ ही गतिविधियों के लिए किया जाता है। स्कूल में शैक्षिक तथा पाठान्तर क्रियाओं की योजना इस प्रकार बनायी जाए जिससे हॉल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सके ।
- खेल परिसर (Sport Complex) – नगरों में जगह का अभाव होता है अतः प्रत्येक स्कूल के लिए खेल के मैदान की व्यवस्था करना सम्भव नहीं हो पाता है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए कुछ स्कूलों के लिए खेल परिसर बनाए जा सकते हैं।
- आन्तरिक खेलों, यौगिक आसन, सामूहिक ड्रिल आदि पर बल-बड़ी-बड़ी खेलें अर्थात् फुटबॉल, हॉकी तथा क्रिकेट आदि की व्यवस्था तो खेल परिसरों में की जाए परंतु अन्य प्रकार के खेलों की व्यवस्था स्कूल में खेल के मैदान में की जा सकती है। ऐसा करने से खेल के मैदान का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सकता है ।
उपसंहार – सामान्यतः कहा जा सकता है कि स्कूल भवनों की स्थिति संतोषजनक नहीं है । इसमें भी कोई सन्देह नहीं है कि देश में कुछ स्कूल भवन ऐसे भी हैं। जिनमें बड़े-बड़े होटलों में मिलने वाली सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं । वातानुकूल (Air Conditional) भवन भी हैं। दूसरी ओर बिना छत के स्कूल ।
समय की माँग है कि सभी स्कूलों के लिए उचित भवनों का प्रावधान किया जाए। यह तभी हो सकता है तब हम शिक्षा को उपभोग की वस्तु न माने तथा उत्पादक वस्तु की संज्ञा दें ।
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