स्थानान्तरण की दशाओं का वर्णन एवं इसके शैक्षिक निहितार्थ एवं महत्त्व की विवेचना करें ।

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प्रश्न – स्थानान्तरण की दशाओं का वर्णन एवं इसके शैक्षिक निहितार्थ एवं महत्त्व की विवेचना करें ।
(Describe the conditions of transfer and discuss its educational implications and Importance.)
उत्तर – स्थानान्तरण की दशाएँ (Conditions of Transfer) — हर परिस्थिति में, हर समय स्थानान्तरण सम्भव नहीं होता है। स्थानान्तरण के लिए अनुकूल परिस्थितियों की – आवश्यकता होती है । उपलब्ध परिस्थितियाँ स्थानान्तरण की मात्रा को प्रभावित करती हैं । जितनी अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ होंगी, स्थानान्तरण उतना ही अधिक होगा । स्थानान्तरण के लिए निम्न दशाएँ अनुकूल होती हैं—
  1. पाठ्यक्रम (Curriculum) – जब शिक्षा के किसी भी स्तर का पाठ्यक्रम सीखने वाले की आयु, परिपक्वता, अभिक्षमता एवं अभियोग्यता के अनुकूल हो, उसका जीवन से सम्बन्ध हो, वह सीखने वालों के लिए सार्थक हो और उपयोगी हो, उसमें सीखने वालों की रुचि हो, उसके सभी विषयों और क्रियाओं में आपस में सम्बन्ध हो तथा उनका अपने पूर्व स्तर के पाठ्यक्रम से भी सम्बन्ध हो । जिस पाठ्यक्रम में ये तत्त्व जितने अधिक होते हैं उसे पूरा करने में सीखने का स्थानान्तरण उतना ही अधिक होता है ।
  2. सीखने वाले की इच्छा (Larner’s Will) — स्थानान्तरण काफी हद तक सीखने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है। जब सीखने वाला निश्चय करता है, स्थानान्तरण स्थान लेता है । मरसेल नामक मनौवैज्ञानिक के अनुसार – “किसी नई परिस्थिति में सीखने के स्थानान्तरण की एक अनिवार्य दशा यह है कि सीखने वाले के मन में उसे स्थानान्तरित करने का संकल्प होना चाहिए, अन्यथा स्थानान्तरण सफल नहीं होगा । “
  3. सीखने वाले की बुद्धि (Intelligence of Learners ) – जब सीखने वालों की सामान्य बुद्धि अधिक होती है, उनमें उतनी ही अधिक सामान्य योग्यता का विकास होता है और इस प्रकार उतना ही अधिक सीखने का स्थानान्तरण होता है ।
  4. सीखने वाले की शैक्षिक उपलब्धि ( Learner’s Educational Achievement)—जो विद्यार्थी किसी प्रकरण को रटने के बजाए सोच-समझकर सीखते हैं, वे उस प्रकरण से प्राप्त सीख का अन्यत्र उपयोग करने में सफल होते हैं। क्योंकि इस तरह की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञान, बोध और कौशल स्तर की होती है जो स्थानान्तरण की दशाएँ पैदा करती हैं । रटी हुई विषय-वस्तु से प्राप्त ज्ञान को स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता ।
  5. सीखने वाले की योग्यता ( Learner’s Ability) — मरसेल ने लिखा है जब हम किसी बात को अच्छी तरह सीख लेते हैं तभी हम उसे स्थानान्तरित कर सकते हैं। सीखने की मात्रा सीखने वाले की योग्यता पर निर्भर करती है । अतः, सीखने वालों में यह योग्यता जितनी अधिक होगी उतनी अधिक मात्रा में स्थानान्तरण सम्भव होगा । जैसे—– कोई बालक गणित में अधिक योग्यता रखता है तो उसकी योग्यता उसे अन्य विषय को सीखने में भी सहायता करेगी। इसमें सीखने की विधि भी योगदान देती है ।
    सीखने वाले में अपने कार्यों तथा अनुभवों को जितना अधिक सामान्यीकृत करने की योग्यता होती है, उस व्यक्ति में उतना ही अधिक स्थानान्तरण करने की संभावनाएँ होती हैं । वास्तव में स्थानान्तरण उसी सीमा तक हो पाता है जिस सीमा तक व्यक्ति में सामान्यीकरण करने की योग्यता होती है ।
  6. सीखने वाले की अभिवृत्ति (Learner’s Attitude) — जब सीखने वाले में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल के प्रयोग की अभिवृत्ति होती है । यह देखा गया है कि सीखने वालों सीखे हुए ज्ञान व कौशल के प्रयोग की जितनी तीव्र अभिवृत्ति होती है, वे सीखे हुए ज्ञान कौशल का उतना ही अधिक प्रयोग नए ज्ञान एवं कौशल के सीखने में करते हैं ।
  7. विषय वस्तु की समानता (Similarity in Subject Matter) — प्रो. भाटिया के नुसार — “यदि दो विषय पूर्ण रूप से समान हैं तो शत-प्रतिशत स्थानान्तरण हो सकता है । दे विषय बिल्कुल भिन्न हैं तो तनिक भी स्थानान्तरण सम्भव नहीं है।” भौतिक शास्त्र और गत की विषयवस्तु में समानता पायी जाती है, इससे दोनों में स्थानान्तरण सम्भव होता है । ेनियरिंग के विषय तथा चिकित्सा के विषय में काफी अन्तर होता है अतः, दोनों में पानान्तरण नहीं हो सकता है ।
अधिगम के स्थानान्तरण का शैक्षिक निहितार्थ
(Educational Implication of Transfer of Learning)

शिक्षा के क्षेत्र में सीखने के स्थानान्तरण का बहुत महत्त्व है। स्थानान्तरण के माध्यम सीखने की प्रक्रिया बहुत अधिक सहज, सुगम और प्रभावपूर्ण हो जाती है। स्थानान्तरण शैक्षिक निहितार्थ को निम्न रूप में स्पष्ट किया जाता है –

  1. स्थानान्तरण एवं पाठ्यक्रम (Transfer and Curriculum) – स्थानान्तरण का से अधिक महत्त्व पाठ्यक्रम निर्माण के लिए है । बालकों के मानसिक अनुशासन के लिए नुकूल पाठ्यक्रम बनाया जाए अर्थात् उसमें इस प्रकार के विषयों का समावेश हो, जो योगी हो तथा दैनिक जीवन की समस्याओं से सम्बन्धित हो । पाठ्यक्रम का स्वरूप वहारिक होना चाहिए । थॉमसन का विचार है—”पाठ्यवस्तु में अधिक से अधिक विषयों रहना लाभप्रद है। विषय जितने अधिक रहें, विद्यार्थी में उतनी ही अधिक जीवनोपयोगी ग्यता भी आएगी ।”
  2. स्थानान्तरण और शिक्षण विधि (Transfer and Teaching Methods ) – अध्यापक को सकारात्मकं स्थानान्तरण के लिए उपयुक्त विधि से अध्यापन करना चाहिए । से इस प्रकार शिक्षा दी जाए, जिससे वह एक क्रिया या विषय में प्राप्त ज्ञान का दूसरे विषय सीखने में प्रयोग कर सके । विद्यार्थियों को स्थानान्तरण के लिए प्रशिक्षण भी देना चाहिए । क विषय का दूसरे विषय के ज्ञान में स्थानान्तरण के लिए बालकों को विषय से सम्बन्धित न तत्वों को बता देना चाहिए। इसके लिए साहचर्य के नियमों पर भी ध्यान देना अनिवार्य है।
  3. सामान्यीकरण (Generalization) – अध्यापक को अध्यापन के समय ऐसी ध्यापन विधियों का चयन करना चाहिए, जिससे बालक स्वयं विषय से सम्बन्धित सामान्य सिद्धान्त निकाल सकें । सामान्यीकरण के लिए बालक को स्वयं अवसर प्रदान करना चाहिए । सामान्यीकरण करने की योग्यता का विकास होने पर बालक नवीन परिस्थिति में उसका शीघ्र उपयोग कर लेता है । अध्यापक को सामान्यीकरण के आधार पर अध्यापन करना चाहिए, इससे स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक हो सकती है ।
अध्यापकों के स्थानान्तरण का महत्त्व
(Importance of Transfers for Teachers)

शिक्षा प्रक्रिया का वास्तविक संचालन अध्यापक ही होता है। अध्यापकों के लिए सीखने का स्थानान्तरण तभी सार्थक हो सकता है, जब अध्यापक इन बातों का ध्यान रखें—

  1. अध्यापक को ध्यान में रखना चाहिए कि सीखा हुआ ज्ञान एक परिस्थिति में धनात्मक स्थानान्तरण कर सकता है तो वही ज्ञान दूसरी स्थिति में ऋणात्मक स्थानान्तरण भी कर सकता है ।
  2. अध्यापकों को चाहिए कि अध्यापन के समय विद्यार्थियों को अपनी सामान्य बुद्धि के प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर दें ।
  3. स्थानान्तरण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करना अध्यापक का ही उत्तरदायित्व है।
  4. अध्यापकों को कक्षा में विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित उदाहरण देकर अपनी बात को समझाना चाहिए ।
  5. अध्यापकों को कार्य के लक्षणों तथा विशेषताओं को पहचानने में विद्यार्थियों की सहायता करना चाहिए ।

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